Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
View full book text
________________
जैन धर्म-दर्शन हुई । तब उन्होंने अर्धमागधी भाषा में धर्मोपदेश दिया और चतुर्विध संघ (साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका) की स्थापना की।
भगवान महावीर ने अपने जीवन के अन्तिम तीस वर्ष सर्वज्ञ के रूप में व्यतीत किये । अन्तिम वर्षावास पावापुरी में किया और वहीं पर ७२ वर्ष की अवस्था में उन्हें कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन निर्वाण प्राप्त हुआ। उस समय वहां पर काशी तथा कोशल राज्य के १८ राजा, एवं मल्लकी और लेच्छकी वंश के भी अठारह राजा विराजमान थे। उन लोगों ने ऐसा सोचकर कि मृत्यु के साथ ही आध्यात्मिक ज्योति विलुप्त हो गई, दीपक जलाकर भौतिक ज्योति प्रज्वलित की। ___ भगवान् महावीर एक बृहत्संघ के अधिष्ठाता थे। उस संघ में १४००० साधु, ३६००० साध्वियां, १५६००० श्रावक तथा ३१८००० श्राविकाएं थीं। महावीर के अनुयायी निम्न प्रकार के थे-महाव्रती साधु अर्थात् श्रमण, जैसे इन्द्रभूति आदि, महाव्रती साध्वियां अर्थात् श्रमणियां, जैसे-- चन्दना आदि, अणुवती श्रावक जैसे- शंख आदि, अणुव्रती श्राविकाएं, जैसे- सुलसा आदि, सामान्य गृहस्थ पुरुष, जैसे-श्रेणिक (बिम्बिसार), कुणिक ( अजातशत्रु ), प्रद्योत, उदायन आदि, सामान्य गृहस्थी स्त्रियां, जैसे- चेलना आदि। तीर्थ कर के तीर्थ या संघ में श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका, इन चार प्रकार के व्यक्तियों का ही समावेश होता है। सुधर्मा, जम्बू, भद्रबाहु और स्थूलभद्र :
भगवान् महावीर के ग्यारह गणधरों में से केवल इन्द्रभूति तथा सुधर्मा ही उनक निर्वाणोपरान्त जीवित रहे। सुधर्मा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org