Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन र्पण किया तब से राज्य के खजाने के सोने, चांदी, जवाहरात आदि की वृद्धि शुरू हो गई। फलतः उनका नाम वर्धमान रखा गया। वैसे वे तीन नामों से प्रसिद्ध हुए--वर्धमान, श्रमण और महावीर । वर्धमान नाम उन्हें माता-पिता से मिला। लोगों ने उन्हें श्रमण नाम से पुकारा, कारण वे लगातार समभावपूर्वक सहज सुख के साथ बहुत दिनों तक तपस्या में लीन रहे । जब उन्होने सब प्रकार के भय, संघर्ष, विपदाओं आदि पर विजय प्राप्त कर ली तो देवताओं के द्वारा उन्हें महावीर की उपाधि मिली।
वर्धमान ने तीस वर्ष तक गार्हस्थ्य जीवन व्यतीत किया। जब उनके माता-पिता स्वर्गवासी हो गये तब उन्होंने अपने श्रेष्ठजनों की स्वीकृति लेकर अपनी सारी सम्पत्ति सालभर तक गरीबों को बांटी और बाद में घर-बार भी त्याग दिया । दो दिन तक उपवास करने के बाद वर्धमान ने मात्र एक वस्त्र धारण करके चन्द्रप्रभा नामक पालकी पर सवार होकर ज्ञातखण्ड नामक उद्यान की ओर प्रस्थान किया। वहां पहुंचकर वे पालकी से उतर गये और एक अशोक वृक्ष के निकट अपने सभी आभूषणों को त्याग कर सिर के बालों को पाँच मुष्टियों में उखाड़ कर पूर्णतः अनगार अर्थात् गृहत्यागी बन गये। उन्होंने सिर्फ एक साल एक माह तक एक वस्त्र धारण किया, उसके बाद उसे भी त्याग कर नग्न भ्रमण करने लगे।
महावीर ने अपना दूसरा चातुर्मास--वर्षावास राजगृह के उपनगर नालन्दा के एक जुलाहे के घर व्यतीत किया। वहाँ गोशाल नामक आजीविक उनके पास पहुचा और अपना शिष्य बना लेने के लिए उनसे आग्रह किया। महावीर ने उसके
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