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प्र० संख्या.
विषय
३२ बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूपका वर्णन
३३ आज्ञाविचय धर्मध्यानका स्वरूप..... ३४ अपायविचय धर्मध्यानका वर्णन ... ३५ विपाकविचयधर्मध्यानका वर्णन
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३४५
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४१९
३६ संस्थानविचय धर्मध्यानका वर्णन ३५२ ४१ उपदेश और धर्मध्यानके फलका वर्णन ४२४
अधोलोकका वर्णन
३५४
४३०
मध्यलोकका वर्णन
ऊर्ध्वलोकका वर्णन
३७ पिंडस्थध्यानका वर्णन
800
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अनाहतका आकार
1938
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पार्थिवीधारणाका वर्णन आग्नेयीधारणाका वर्णन. मारुतीधारणा का वर्णन वारुणीधारणाका वर्णन तत्त्वरूपवतीधारणाका वर्णन
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३८ पदस्थ ध्यानका वर्णन वर्णमातृकाध्यानका वर्णन मन्त्रराजके ध्यानका वर्णन
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www.
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पृष्ठ.
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३१६
३३६
३४१
३६४
३६६
३८०
३८१
૩૮૨
३८४
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३८५
३८७
22
३८९
प्रणव (ओंकार ) के ध्यानका वर्णन ३९३ पंचनमस्कारमन्त्रके ध्यानका वर्णन
३९४
विषय.
षोडशाक्षरी विद्याक आदि अनेक मंत्रोंके ध्यानका वर्णन
प्र० संख्या.
३९ रूपस्यध्यानका वर्णन
४० चुरे ध्यानका निषेध रूपातीतध्यानका वर्णन
४२ शुक्लध्यानके चार भेदोंका स्वरूप पृथक्त्ववितर्कविचारनामक शुरू
ध्यानका वर्णन एकत्ववितर्क विचार नामक शुरू
ध्यानका वर्णन
शास्त्रका उपसंहार
शास्त्रकी समाप्ति.
इति विषयानुक्रमणिका समाप्ता ।
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इसमें निम्न लिखित नौ ९ अक्षर मिले हुए हैं.
१ उकार. २ अनुखार, ३ ईकार. ४ ऊरकार. ५ हकार .
६ हकार. ७ निम्र रकार. ८ अनुखार. ९ ईकार.
808
अनाहतका लक्षण.
उविन्द्वाकारहरो रेफविद्वानवाक्षरम् ।
मालाः स्यन्दि पीयूपविन्दु विदुरनाहतम् ॥ १ ॥
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४३५
४३८
केवलज्ञानकी महिमाका वर्णन ४३६ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिथ्यानका वर्णन समुच्छिन्न क्रियनामक शुक्लध्यानका वर्णन
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मोक्षका वर्णन सिद्धभगवान्के गुणोंकी महिमाका वर्णन
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930
05.0
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३९६
४०९
४१७
पृष्ठ.
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४३४
सूचना - ज्ञानार्णव पृष्ठ ३८९ में हमने अनाहतका स्वरूप लिखने की प्रतिज्ञा की है । तदनुसार अनाहतका लक्षण व आकार यहां लिखते हैं ।
४४०
४४१
४४३
४४६
४४७
यह अनाहतका लक्षण व आकार हमको श्रीजवाहरलालजी शास्त्रीने बड़े परिश्रमसे
प्रतिष्ठाविधिसंबंधी पुस्तकोंमेंसे निकालकर बतलाया है, इस लिये हम उनके कृतज्ञ हैं ।
अनुवादक.