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कल्याणकादि तप नहीं हो सकते, ऐसा कहना प्रत्यक्ष मृषा है । देखोअनंतकाल से अनंततीर्थकर महाराज होगये हैं, उन महाराजोंके च्य वन-जन्म केवलज्ञानादि कल्याणक होने में, कोईभी पक्ष, कोईभीमास, कोई भी दिवस; या कोई भी वर्ष वाधक कभी नहींहोसकते हैं, किं तु हरेक माल, हरेक पक्ष, हरेक ऋतु व हरेक दिवस होसकते हैं. इसलिये पहिले महीने के या दूसरे महीने के प्रथमपक्ष में या दूसरे पक्षमें जिसरोज च्यवनादि जो जो कल्याणक हुए होवें उसी महीने के उसी पक्ष में उसी रोज उन्हीं कल्याणको का आराधनकरना शास्त्रानुसारही है. इसलिये इसको कोई भी निषेध नहीं कर सकता है । मगर अभी जनपंचांग के अभावसे व ज्ञानीमहाराजके अभाव से अधिक पौ
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या अधिक आषाढ में कौन २ भगवान् के कौन २ कल्याणक हुए हैं, उनकी मालूम नहीं होनेसे तथा लौकिकटिपणा में हरेक मासोंकी वृद्धि होनेसे चैत्र वैशाखादि महीने बढ़ें तब भी परंपरागत ८४ गच्छों के सभी पूर्वाचाने लौकिक रूढीके अनुसार कितनेक पर्व प्रथम महीने में और कितनेक पर्व दूसरे महीने में करनेकी प्रवृत्ति र. रूखी है। उसी मुजब वर्तमान भी करने में आते हैं। देखिये-जैसे -कार्तिक महीने संबंधी श्रीलंभवनाथस्वामीजी के केवलज्ञानकल्याणक, श्रीपद्मप्रभुजीके जन्म व दीक्षा कल्याणक, श्रीनेमिनाथजीके च्यवन कल्याणक ओर श्रीमहावीरस्वामीके निर्वाणकल्याणक व दीवालीपवीदि कार्य दो कार्ति कहाँवे; तब प्रथमकार्त्तिकम करने में आते हैं; तथा दो पौष होवे तर श्रीपार्श्वनाथ जी का जन्म कल्याणक पौषदशमीकापर्व प्रथम पौष महीने में करने में आता है, और जब दो चैत्र महीने होंवे तब श्री पार्श्वनाथजीके केवलज्ञान कल्याणकादि पर्वकार्य उष्णकाल के प्रथममहीने के प्रथम पक्ष अर्थात् पहिले चैत्र में करने आते हैं. मगर श्रीमहावीरस्वामी के जन्मकल्याणक व ओलीआदिकपर्वतो उष्णकाल के दूसरे महीने के चौथे पक्षमें अर्थात् दूसरे चैत्र में करने आते हैं. ऐसेहा दोष हो तव श्रीआदीश्वरसगवान् के च्यवनादि उष्णकाल के चोथे महीने के सातवे पक्ष में प्रथमपादने करने आते हैं, और श्रीमहावीरस्वामी च्यवनादि पांचवें महीने के दशवे पक्ष में दूसरे आषाढ में करने आते हैं. इसी अहिने में दोनों पक्षों कीगनती सहित स
महीनों के कार्य यथायोग्य कल्याणकादि तप वगैरह करने में आते हैं। इसलिय कल्याणकादि पर्वकार्य में अधिक महीना गिनती में नहींलेते, ऐसाकहना सर्वथा अनुचित है. इसको विशेषतत्त्वज्ञ जनस्वयं विचारलेंगे.
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