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[ २७ ]
व जन्माष्टमी वगैरह पर्वकार्य नहीं करते; ऐसा जान बुझकर मायामृ. कथन करना और बालजीवों को उलटा रस्ता बतलाना भवभीरु आत्मार्थियों को सर्वथा योग्य नहीं है ।
२८ - गणेश चौथ के पर्वकी तरह पर्युषण पर्व भी दूसरे भाद्रपद में हो सकें या नहीं ?
भो देवानुप्रिय ! गणेश चौथका पर्वतो मास प्रतिबद्ध होने से मासवृद्धि के अभाव में आषाढ चौमासीसे दूसरे महीने के चौथे पक्षम ५० दिने भाद्रपद में होता है. मगर कभी श्रावण या भाद्रपद बढे तब तो तीसरे महीने के छठ्ठे पक्षमें ८० दिने दूसरे भाद्रपद होता है । इसीतरह मास बढने के अभाव में अढाई (२||) महीनोंसे पांचवा श्राद्धपक्ष होता है. मगर धावणादि मासवढे तब तो साढेतीन (३) महीनों से सातवा श्राद्धपक्ष होता है, तथा दीवालीपर्व भी मासवृद्धि के अभाव मे ३|| महीनोंसे ७ वें पक्षमें कार्तिक में होता है, मगर श्रावणादि बढे तबतो साढेचार (४॥ ) महीनोंसे ९ में पक्षमें होता है. यह बात प्रत्यक्षप्रमाणसे जगत्प्रसिद्ध सर्वजन सम्मत ही है. और पर्युषणापर्व तो दिन प्रतिबद्ध होने से दूसरे महीने के चौथेपक्ष में ५० दिने अवश्यही करने सर्वशास्त्रों में कहे हैं. इसलिये गणेश चौथ के पर्व की तरह पर्युषणपर्व भी दूसरेभाद्रपद में करें तो तीसरे महीने के छठे पक्ष में ८० दिन होने से शास्त्रविरुद्ध होता है, इसलिये दूसरे भाद्रपद में पर्युषणापर्व नहीं हो सक ते. किंतु दूसरे महीने के चौथेपक्ष में ५० दिने प्रथमभाद्रपदमे ही करना शास्त्रानुसार होने से आत्मार्थियों को योग्य है । इसलिये मासप्रतिबद्ध लौकिक गणेशचौथ की तरह दिनप्रतिबद्ध लोकोत्तर पर्युषण पर्वतो दूसरे भाद्रपद में ८० दिन होने से कभी नहीं हो सकते हैं. इसबात को भी विशेष तत्वज्ञ पाठकगण स्वयं विचार लेवेंगे ।
२९ - पहिले पौषादि मास बढतेथे तब कल्याणकादि तप; अपने वडील कैसे करते थे ?
पहिले पौषादि मास बढतेथे तब दोनों महीनोंके चारों पक्षोंमैं- पहिले पक्ष में, या दूसरे पक्ष में, वा तीसरेपक्ष में, अथवा चौथे पक्ष में, जिसपक्षमें, जिसरोज, जिन जिन तीर्थंकर भगवान् के जो जो व्यवन-जन्मादिकल्याणक हुएहोंवें, उसमुजब उस उस पक्ष में, अर्थात्-दोनो महीनोंके ४पक्षों में ज्ञानीमहाराजों को पूछकर आराधन करते थे. यह अनादिकाल से ऐसीही मर्यादा चली आती है । इसलिये अधिकमहीने में
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