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भगवती सून-श. २५ उ. ३ संस्थान के भेद और अल्प-बहुत्व
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क्योंकि उसका इसी प्रकार का स्वभाव होता है ।
आगे जिन शरीरों के लिये जिनका अतिदेश किया गया है, तदनुसार ' स्थित या अस्थित आदि द्रव्यों को ग्रहण करता है'--यह जानना चाहिये । यहां पाँच शरीर, पाँच इन्द्रियाँ. तीन योग और श्वासोच्छ्वास, ये चौदह पद हैं । इन चौदह पद सम्बन्धी चौदह दण्डक हैं, जिनका कथन यथा-योग्य रूप से किया गया है ।
॥ पचीसवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक २५ उद्देशक ३
संस्थान के भेद और अल्प-बहुत्व
.१ प्रश्न-कइ णं भंते ! संठाणा पण्णता ? __ १ उत्तर-गोयमा ! छ संठाणा पण्णत्ता, तं जहा-१ परिमंडले, २ वट्टे, ३ तंसे, ४ चउरंसे, ५ आयते, ६ अणित्थंथे ।
कठिन शब्दार्थ--अणित्यंथे--अनित्थंस्थ--अर्थात् परिमण्डल आदि संस्थानों से अतिरिक्त संस्थान ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! संस्थान छह प्रकार के कहे हैं । यथा-परिमण्डल, वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र, आयत और अनित्थंस्थ।
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