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________________ भगवती सून-श. २५ उ. ३ संस्थान के भेद और अल्प-बहुत्व ३२११ क्योंकि उसका इसी प्रकार का स्वभाव होता है । आगे जिन शरीरों के लिये जिनका अतिदेश किया गया है, तदनुसार ' स्थित या अस्थित आदि द्रव्यों को ग्रहण करता है'--यह जानना चाहिये । यहां पाँच शरीर, पाँच इन्द्रियाँ. तीन योग और श्वासोच्छ्वास, ये चौदह पद हैं । इन चौदह पद सम्बन्धी चौदह दण्डक हैं, जिनका कथन यथा-योग्य रूप से किया गया है । ॥ पचीसवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ शतक २५ उद्देशक ३ संस्थान के भेद और अल्प-बहुत्व .१ प्रश्न-कइ णं भंते ! संठाणा पण्णता ? __ १ उत्तर-गोयमा ! छ संठाणा पण्णत्ता, तं जहा-१ परिमंडले, २ वट्टे, ३ तंसे, ४ चउरंसे, ५ आयते, ६ अणित्थंथे । कठिन शब्दार्थ--अणित्यंथे--अनित्थंस्थ--अर्थात् परिमण्डल आदि संस्थानों से अतिरिक्त संस्थान । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! संस्थान छह प्रकार के कहे हैं । यथा-परिमण्डल, वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र, आयत और अनित्थंस्थ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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