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भगवती सूत्र-श. २५ उ. २ जीव, स्थित द्रव्य ग्रहण करता है या अस्थित
१५ उत्तर-हे गौतम ! वैक्रिय-शरीरवत् यावत् जिव्हेन्द्रिय पर्यन्त । स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में औदारिक-शरीर के समान । मनोयोग के विषय में कार्मण-शरीरवत् । यह नियम से छहों दिशाओं से आये हुए द्रव्यों को ग्रहण करता है। इसी प्रकार वचन योग के द्रव्य भी । कायायोग के द्रव्य औदारिकशरीर के समान हैं।
१६ प्रश्न-जीवे णं भंते ! जाई दव्वाइं आणापाणुत्ताए गेण्हइ। जहेव ओरालियसरीरत्ताए, जाव सिय पंचदिसि । ।
१६ उत्तर-केइ चउवीसदंडएणं एयाणि पयाणिभण्णंति-'जस्स जं अत्थि'।
* : सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति। *
॥ पणवीसइमे सए बीओ उद्देसो समत्तों ॥ भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, जिन द्रव्यों को श्वासोच्छवासपने ग्रहण करता है, इत्यादि० ?
१६ उत्तर-हे गौतम ! औदारिक-शरीरवत् यावत् कदाचित् तीन, चार या पांच दिशा से आये हुए द्रव्य ग्रहण करता है । कोई-कोई आचार्य-इन पदों को चौबीस दण्डक में कहते है । यावत् 'जस्स ज अत्थि' अर्थात् 'जिसके जो हो, उसके लिये वही कहना चाहिये. 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन--तेजस्-शरीर जीव के अवगाह क्षेत्र के भीतर रहे हुए द्रव्यों को ही ग्रहण करता है, उससे बाहर रहे हुए द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता । क्योंकि उन्हें खीचने का स्वभाव उसमें नहीं है। अथवा वह स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित को नहीं।
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