Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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भाव के बिना त्रिभुवन में भ्रमण किया है तथा क्षुधा तृषा आदि के दुःख सहन किये हैं और क्षुद्रभव धारण किये हैं
रत्नत्रय का लक्षण
भाव के बिना प्राप्त होने वाले क्रमरणों का निरूपण द्रव्य लिङ्गी मुनि सर्वत्र भ्रमण करता है भाव रहित जीव अनन्त काल से जन्म मरण आदि
के दुःख भोग रहा है
भाव के बिना जीव ने अनन्त पुद्गल ग्रहण किये भाव के बिना समस्त लोक में यह जीव भ्रमा है भाव के बिना अनेक रोग, गर्भवास के दुःख तथा बाल्य आदि अवस्थाओं के दुःख भोगे हैं भाव से मुक्त जीव ही मुक्त कहलाता है कषाय से बाहुबली कलुषित रहे
मधुपिङ्ग मुनि की कथा वसिष्ठ मुनि की कथा
भाव के बिना यह जीव चौरासी लाख योनियों में
भटका है
मात्र द्रव्य लिङ्ग क्या कर सकता है ?
बाहुमुनि की कथा
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पानी था
भावलिङ्गी शिवकुमार की कथा
( तदन्तर्गत जम्बूस्वामी की कथा ) भव्य सेन मुनि
की कथा
शिवभूति मुनि की कथा
भाव से ही नग्न होता है
भाव रहित नग्नत्व अकार्यकारी है
भावलिङ्गी कौन होता है। भावलिङ्गी की भावना
भावपूर्वक विशुद्ध आत्मध्यान की प्रेरणा शुद्ध जीव स्वभाव की भावना करने वाला शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होता है
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गाथा
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