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________________ भाव के बिना त्रिभुवन में भ्रमण किया है तथा क्षुधा तृषा आदि के दुःख सहन किये हैं और क्षुद्रभव धारण किये हैं रत्नत्रय का लक्षण भाव के बिना प्राप्त होने वाले क्रमरणों का निरूपण द्रव्य लिङ्गी मुनि सर्वत्र भ्रमण करता है भाव रहित जीव अनन्त काल से जन्म मरण आदि के दुःख भोग रहा है भाव के बिना जीव ने अनन्त पुद्गल ग्रहण किये भाव के बिना समस्त लोक में यह जीव भ्रमा है भाव के बिना अनेक रोग, गर्भवास के दुःख तथा बाल्य आदि अवस्थाओं के दुःख भोगे हैं भाव से मुक्त जीव ही मुक्त कहलाता है कषाय से बाहुबली कलुषित रहे मधुपिङ्ग मुनि की कथा वसिष्ठ मुनि की कथा भाव के बिना यह जीव चौरासी लाख योनियों में भटका है मात्र द्रव्य लिङ्ग क्या कर सकता है ? बाहुमुनि की कथा ३८ पानी था भावलिङ्गी शिवकुमार की कथा ( तदन्तर्गत जम्बूस्वामी की कथा ) भव्य सेन मुनि की कथा शिवभूति मुनि की कथा भाव से ही नग्न होता है भाव रहित नग्नत्व अकार्यकारी है भावलिङ्गी कौन होता है। भावलिङ्गी की भावना भावपूर्वक विशुद्ध आत्मध्यान की प्रेरणा शुद्ध जीव स्वभाव की भावना करने वाला शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होता है Jain Education International गाथा २१- ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७-४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७. ४८ ४९ ५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७-५९ ६० ६१ For Personal & Private Use Only पृष्ठ २६७-२७४ २७५ २७६ २८४ २८५ २८७ २८९ २९० - २९५ २९६ २९७ २९८- ३२५ ३२६-३४४ ३४५ ३४६ ३४७-३४८ ३४९-३५२ ३५३-३७२ ३७४-३७७ ३७८-३७९ ३७९ ३८० ३८२ ३८३-३८५ ३८६ ૨૮૦ www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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