Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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गाथा
पृष्ठ
२८-३०
१८३-१८६
३५
अहंतस्त्ररूपाधिकार नामादि निक्षेपों की अपेक्षा अर्हन्त का वर्णन गुणस्थानादि की अपेक्षा अर्हन्त के वर्णन की। प्रतिज्ञा गुणस्थान की अपेक्षा अहंन्त का वर्णन चौंतीस अतिशय तथा प्रतिहार्यों का वर्णन मार्गणा की अपेक्षा अर्हन्त का वर्णन पर्याप्ति की अपेक्षा अर्हन्त का वर्णन प्राणों की अपेक्षा अर्हन्त का वर्णन जीव स्थानों की अपेक्षा अरहन्त का वर्णन द्रव्य की अपेक्षा अरहन्त का वर्णन भाव निक्षेप की अपेक्षा अर्हन्त का वर्णन प्रव्रज्या का वर्णन बोध प्राभूत की चूलिका
भाव पाहुड मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञा वाक्य भावलिङ्ग की प्रमुखता आभ्यन्तर परिग्रह से युक्त मनुष्य का बाह्य त्याग 'निष्फल है भाव रहित को सिद्धि नहीं होती भाव के अशुद्ध रहते हुए बाह्य का त्याग क्या कर सकता है ? भाव लिङ्ग प्रथम लिङ्ग है भाव रहित जोव ने अनेक बार निग्रंन्य मुद्रा धारण की है भाव के बिना जीव ने नरक गति के भीषण दुःख
१९७
१९८ १९९-२०२ २०२-२०३ २०४-२३३ २४१-२४३
४०-४१ ४२-५९ ६०-६२
२४५ २४६
४१
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२५०
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सहे हैं
८-११
२५२-२५६
१२-१६
१५७-२६४
शुभ भावना से रहित जीव सुरलोक में भी दुःख प्राप्त करता है भाव के बिना मनुष्यगति के दुःख सहन करने पड़ते हैं
१७-२०
२६४-२६६
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