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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] यहां पर अधिकार नहीं है। अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के मिलने से एक व्यावहारिक परमाणु उत्पन्न होता है। उसको खड्गादि भी अतिक्रम नहीं कर सकते । अग्नि जला नहीं सकती । पुष्कलसंवर्त नामक महामेह जो उत्सर्पिणी काल में होता है, उसको जलरूप नहीं कर सकता। गंगा महानदी के स्रोतोगत होता हुआ भी वह पानी में लीन नहीं होता। किन्तु सुतीक्ष्ण शस्त्र भी उसको छेदन करने में असमर्थ है। वह परमाणु केवली भगवानों ने व्यावहारिक गणना की आदि में प्रतिपादन किया है। अनन्त व्यावहारिक परमाणु पुद्गलों के मिलने से उत्श्लक्ष्णश्लदिणका परमाणु उत्पन्न होता है। फिर श्लक्ष्णश्लक्षिणका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु, देवकुरुउत्तरकुरु मनुष्यों का बालान, हरिवर्ष-रम्यवर्ष मनुष्यों का बालान, हैमवय-हैरण्यवय मनुष्यों का बालाग्र, पूर्वमहाविदेह-पश्चिममहाविदेह मनुष्यों का बालाग्र, भरत. पेरवत मनुष्यों का बालाग्र, लिक्षा, जू, यव, अंगुल, ये प्रत्येक उत्तरोत्तर पाठ गुणा अधिक जानने चाहिये । उक्त ६ अंगुलों का अर्द्ध पाद, १२ अंगुलों का एक पाद, २४ अंगुलों का एक हस्त, ४८ अंगुलों की एक कुति, और ६६ अंगुलों का एक धनुष होता है । इसी धनुष के प्रमाण से २००० धनुषों का एक कोस और ४ कोसों का एक योजन होता है । इस अंगुल के कथन करने का प्रयोजन, चार गतियों के जीवों की अवगाहना का मान करना है । इसलिये अवगाहना के विषय में अब सूत्रकार कहते हैं
अध अवगाहना विपय । णेरइयाणं भत्ते ! के महालिया सरीरोगाहणा पएणता ? गोयमा!! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिजाय उत्तरखेउब्विाय तत्थणं जा सा भवधारणिज्जा, सा जहणणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उकोसेणं पंचधणुसयाइं; तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विा सा जहणणेणं अंगुलस्स संखेजइभाग, उक्कोसेणं धणुसहस्सं ॥
पदार्थ-(णेरइयाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पएणता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउविश्रा य) [श्री गौतम प्रभु जी, भगवान से प्रश्न
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