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[ श्रोमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] यिक चारित्र प्रतिपादन किया है और उसी प्रत्यय से भव्य जीवों ने श्रवण किया है।
() सामायिक का लक्षण क्या है ? * श्रद्धा, विज्ञान, विरति और मिश्र लक्षण होते हैं।
(१०) नयों के मत से सामायिक कैसे होती है ? व्यवहार नय से पाठ प सामायिक होती है, तीन शब्द नयों से जीवादि वस्तु का ज्ञान होना पाठ रूप सामायिक होती है।
(११) नयों में सामायिक का समवतार कैसे होता है ? + अनुपयुक्त सामायिक का समवतार नैगम नय और व्यवहार नय से अनेक द्रव्य रूप है, संग्रह और ऋजुसूत्र नयसे अनुपयुक्त जितने सामायिक के द्रव्य हो उनका एक ही द्रव्य मानते हैं । तीनों शब्द नयों से अनुपयुक्त रूप सामायिक कोई वस्तु नहीं है, लेकिन उपयोग रूा सामायिक तीर्नो नयों से वस्तु रूप है ।
(१२) सामायिक क्या वस्तु है ? जीव का गुण है।
(१३) सामायिक कितने प्रकार से प्रतिपादन की गई है ? तीन प्रकार से जैसेकि
* सम्यक्त्व सामायिक का तत्त्वों पर श्रद्धा रखना, श्रुत सामायिक का जीवादिकों का परिज्ञान होना, चारित्र सामायिक का सावध विरति रूप और देशविरति सामायिक का विरत्यविरति रूप है । तत्वार्थश्रद्वानं सम्यग्दर्शनम् । जोबाजीवाश्रव०-तत्वार्थसूत्र अ० १, सू० २-३ ।
आगम में भी कहा है--'सदसण जाणणा खलु विरई मीसं च लक्खणं कहए'-श्रद्धानं शानं खलु विरतिमिश्रच लक्षणं कथयति ।
' "तबसंजमो अणुमओ, निग्गंधं पवयणं च ववहारो । सदुज्जुसुयाणं पुण निव्वाणं संजमो चेत्र ॥ १ ॥-तपः संयमो ऽनुमतो नैय॒त्थ्यं प्रवचनं च व्यवहारः । शब्द सूत्राणं पुनर्निर्वाण संयमश्चैत्र । अर्थात् व्यबहार नय से तपः, संयम, निर्ग्रन्थ और प्रवचन रूप सामायिक होती है, लेकिन शब्द और ऋजुसूत्र नय के मत से संयम और मोक्ष रूप सामायिक होती है।
+ 'जीवो गुणपडिबन्नो णयस्स दव्वट्टियस्स सामाइयं'-जीवो गुणप्रतिपन्नो नयस्य द्रव्यार्थिकस्य सामायिकम् । “सामाइयं च तिविहं सम्मत्तसुयं तहा चरित्तं च”--सामायिकं च त्रिविधं सम्यक्त्वं श्रुतं तथा चरित्र च । 'जस्स सामाणिो अप्पा'-यस्य सामानिकः (सनिहित) श्रात्मा । "नेचदिसाकालगइभवियसएिणउस्सासदिठिमाहारे"-क्षेत्रदिकालगतिभव्यसंयुच्छवासदृष्टमाहारः।
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