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[ उत्तरार्धम् ]
(२३) सामायिक के आकर्ष एक भव में वा अनेक भव में कितने होते हैं ? अर्थात् एक भव में वा अनेक भवों में सामायिक कितनी वार धारण की जाती हैं ? तीनों सामायिक का सहस्रपृथक्त्व और देशविरति वालों का शत पृथक्त्व एक भव के आकर्ष होते हैं । जघन्य दो वार, उत्कृष्ट पृथक्त्व सहस्रवार कर्ष अनेक भवों की अपेक्षा से होते हैं ।
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(२४) सामायिक वाला कितने क्षेत्र तक स्पर्श करता है ? सम्यक्त्व और चारित्र के साथ जीव उत्कृष्ट से सर्व लोक का स्पर्श करता है, जघन्य से लोक के सप्त, दश या पांच श्रुत और देशविरति सामायिक का असंख्येयक भाग को पर्श करता है ।
(२५) सामायिक की निरुक्ति क्या है ? जो निश्चित उक्ति-कथन होती. है, वही निरुक्ति होती है । इस लिये सम्यग् दृष्टि, मोह से रहित, शुद्ध स्वभाव वाले, दर्शनबोधी, पाप से रहित इत्यादि सामायिक की निरुक्ति है, अर्थात् सामायिक का जो पूर्ण वर्णन है, वही सामायिक की निरुक्ति होती है ।
इस प्रकार संक्ष ेप से उपोद्घात निरुक्ति का वर्णन किया गया है। विस्तार पूर्वक श्रावश्यक निरुक्ति टीका से जानना चाहिये । इस प्रकार दो गाथाओं का संक्षेप अर्थ है । विस्तृत अर्थ अन्य ग्रन्थों से जानना चाहिये । उपोद्घात निर्युक्ति का सारांश इतना ही है कि-अध्ययन का सर्व सारांश प्रथम ही अवगत करना चाहिये । वह सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति पूर्वक होता है, इस लिये अब सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति का स्वरूप जानना चाहिये। उस में यद्यपि पूर्व सूत्रानुगम प्रतिपादन कर पश्चात् सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति वर्णन की गई है, तथापि यहां पर नियुक्ति के संघात होने से ही दिखलाई जाती है, इस लिये कोई दोषापत्ति नहीं है ।
सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति |
से कि त सुत्तफासियनिज्जुत्तिणुगमे ? सुतं उच्चारेअव्वं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलि पडिपुराणं पडिपुराणघोसं कंट्रोट्ट विप्प मुक्कं गुरुवायणोवगयं, तो तत्थ राज्जिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपर्यं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा खोसामाइयपयं वा तत्रो तम्मि उच्चारिए समाणे केसि च भगवंताणं केइ अस्था
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