Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 318
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ श्रीमदनुयागद्वारसूत्रम् ] ३१३ अतः अलद्रूप खपुष्पवत् होता है । यदि द्वितीय पक्ष अभेद रूप स्वीकृत किया जाय तब सामान्य स्वरूप ही सिद्ध हो गया, क्यों कि - विशेष सामान्य स्वरूप से पृथक नहीं है । इस लिये एक ही सिद्ध हुआ । इस प्रकार संग्रह नय के मत में केवल एक सामान्य स्वरूप ही माना जाता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामान्य स्वरूप का अभाव सिद्ध करने वाला व्यवहार नय है, अर्थात् सर्वदा जिस का द्रव्यों में विशेष भाव हो । जैसे कि घटादि पदार्थ जलादि से भरे हुये अपनी २ क्रिया करते दिखाई देते हैं, लेकिन उस से अतिरिक्त सामा न्य नहीं होता । इस लिये सामान्य स्वरूप को लोक व्यवहार भी अंगीकार नहीं करता । सामान्य स्वरूप से लौकिक व्यवहार की प्रवृत्ति भी नहीं हो सकती । इस सर्व प्रकार से सामान्य स्वरूप सिद्ध नहीं होता है अतः लौकिक व्यवहार में प्रधान नय होने से मात्र हो सिद्ध रूप है और इसे व्यवहार नय कहते हैं । विशेष से सामान्य स्वरूप पृथकू मो नहीं हैं अथवा विशेषतया जिल का निश्चय किया जाता है उसे विनिश्वय कहते हैं । "सुयनाणे निउत्त, केवले तयांतरं । अपणो य परेसिं च, जम्हा तं परिभावगं ॥ २ ॥” श्रुतज्ञाने च नियुक्त, केवले तदनन्तरम् । श्रात्मनश्च परेषां च यस्मात्तत्परिभावकम् ॥ १॥ एक ही वस्तु भिन्न २ लिंग और भिन्न २ वचन से कही जाती है, मानों इस नय का मत ही निराला है । कोई लिंग वचन का भेद ही नहीं होता । इस में यह शंका भी उत्पन्न होती है कि wandelg सामान्य स्वरूप विशेष स्वरूप से भिन्न है या अभिन्न ? यदि भिन्न माना जाय तब विशेष स्वरूप से सामान्य स्वरूप पृथक् दृष्टि गोचर होना चाहिये, लेकिन होता नहीं । इस लिये प्रथम पक्ष ग्राह्य हो जाता है ! यदि द्वितीय अभिन्न पक्ष स्वीकार किया जाय तब विशेष स्वरूप की सिद्धि हो गई, क्योंकि विशेष स्वरूप से सामान्य स्वरूप पृथकू नहीं है, इस लिये एक ही रूप हुए । अतः व्यवहार नय का यह मन्तव्य सिद्ध हो गया कि जो वस्तु व्यवहार से ग्राह्य है उसी भाव को विद्यमान माना जाता है। जो भाव विद्यमान अयो ग्य तो है लेकिन व्यवहार में उस का महण नहीं होता, वह उपकारक न होने से भाव व्यवहार में माननीय होने से प्रयोग्य है । जैसे परमाणुओं के समूहों से घट की उत्पत्ति है । घट का विचार कल्पनीय है, परन्तु परमाणुओं का विचार For Private and Personal Use Only

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