Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० [ उत्तरार्धम् । है । जैसे कि-"जावइया वयणपहो तावइया चेव हुँति नयवाया" यावन्मात्र वचन के मार्ग हैं तावन्मात्र ही नय वाक्य है तथापि मूल सूत्र में मूल सात ही नय वर्णन किये गये हैं। जैसे कि-नैगम १, संग्रह २, व्यवहार ३, ऋजुसूत्र ४, शब्द ६, समभिरूढ ६ और एवंभूत ७ । इन के मुख्य दो द्वार हैं । जैसे कि-- अर्थ द्वार और शब्द द्वार । प्रथम चार अर्थ नय है, तीन पिछले शब्द नय हैं। और दुर्नय उसे कहते हैं जो एकान्त वाद को मानते हो और अनेकान्त वाद का निषेध करें । जैसे कि-गम नय से नैयायिक और वैशेषिक दर्शन उत्पन्न हुये हैं संग्रह नय से अद्वैतवाद, सांख्य और मांसक दर्शन मी उत्पन्न हुए हैं, व्यवहार नय से चार्वाकमत प्रचलित हुआ है, ऋजुसूत्र के आश्रित बौद्ध दर्शन हैं । शब्दादि तीन नयों के आश्रित चैयाकरणादि हैं। नय और सुनय का विवरण पंधों में इस प्रकार से भी किया गया है। जैसे कि--नेगम, संग्रह और व्यवहार, इनके अनेक भेद किये गये हैं। यथा धर्म धर्मी से प्रधान भाव ले भाषण करना । उले नैगम नय कहते हैं । जैसे कि श्रात्मा में चेतन गुण है सो श्रात्मा मुख्य है, चेतन उसका गुण है । जब दोनों धर्मो का प्रधान भाव सिद्ध हुआ तब उसको द्रव्य और पर्याय स्वतः सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार नेगम नय का सिद्धान्त है जब दोनों को एकान्त भाव से कथन किये जाये तब नैगमाभास हो जाता है जैसे कि--प्रात्मा और चेतन मिन्न २ पदार्थ हैं। इसी को नैगम दुर्नय कहते हैं। जो सामान्य मात्र से पदार्थों का वर्णन करे उसे संग्रह नय कहते हैं जिस के मुख्य दो भेद है जैसे कि - पर संग्रह और अपरसंग्रह । सामान्य प्रकार से सर्व वस्तु को एक रू' मानना, परसंग्रह होता है फिर उसी को एकान्त रूप मानना उसे परसंग्रहाभास कहते हैं तथा द्रव्यत्व,गुणत्व, कर्मत्व श्रादि को अवान्तर सामान्य प्रकार से मानना-उसका विशेष कुछ भी कथन करना उसे अपरसंग्रह कहते हैं। जब धर्म, अधर्म, श्राकाश, काल और पुद्गल द्रव्य को एकान्त से एक रूप माना जाय तब वह अपरसंग्रहाभास हो जाता है। __ संग्रह नय के कथन को निर्मूल करता हुश्रा द्रव्य और पर्याय को ठीक २ मानने वाला व्यवहार नय होता है जो द्रव्य और पर्याय का एकान्त रूप से भेद मानता हो उसे व्यवहार नयाभाल कहते हैं । इस नय के आश्रित चार्वाक दर्शन है। इस प्रकार व्यवहार नय और पवहार दुर्नय का विवरण किया गया है। For Private and Personal Use Only

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