Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

View full book text
Previous | Next

Page 325
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० [ उत्तरार्धम् ] से ही होता है । परोक्ष ज्ञान के पांच भेद हैं । जैसे कि-स्मृति , प्रत्यभिज्ञान २, ऊह ३, अनुमान ४ ओर आगम !, पूर्व संस्कारोत्पन्न स्मृति ज्ञान है। स्मृति और अनुभव से उत्पन्न प्रत्यभिज्ञान होता है। जैसे कि यह वहो देवदत्त है जिसको मैंने पूर्व में अमुक स्थान पर देखा था। त्रिकाल के साध्य और साधन ज्ञान से ऊह शान होता है तथा इस का द्वितीय नाम तर्क ज्ञान भी है । अनुमान के दो भेद हैं स्वार्थानुमान और परार्थानुमान। स्वार्थानुमान अन्यथानुम्पत्ति लक्षण हेतु प्रह संबन्ध स्मरणहेतुक साध्य ज्ञान होता है, परार्थानुमान पक्ष हेतु दृष्टान्त उपनय और निगमन कर पांच अवयत्री होता है। श्री अहत् देव के वचन से उत्पन्न हुए ज्ञान को आगमानुमान कहते हैं तथा उपवार स सर्वज्ञ के वचन को हो आगमानुमान कहते हैं। इस प्रकार नप प्रमाण पूर्वक प्रमाण वचन होता है,अन्य. था वह दुर्नप है। इस घास। एकान्तवाद मिथ मारूर है, अनेकान्तवाद लम्यम् दर्शन है । श्रीजिनेन्द्र देव के स्थाद्वादरूप दर्शन में सर्व नय भुक्ताहारवत् सुन्दरता को प्राप्त है और इनका परसर स्याद्वार दशन में विरोध मिट जाता है जैसे कि मध्यस्थ के सन्मुख वादी प्रतिवादी शान्त हो जाते हैं । इसो प्रकार श्रोजिनेन्द्र देव के ' स्यात्' इस पवित्र वचन से सर्व नय विवाद रहित होकर मैत्री भाव से परस्पर निवास करते हैं ! ___ यहां यदि यह शंका की जाय कि जब सर्व दर्शन स्याद्वाद दर्शन में विद्यमान हैं तब स्थाद्वाद दर्शन अन्य दर्शनों में क्यों नहीं माना जाता ? तो इसका उत्तर यह है कि समुद्र तो सर्वनदीमय है किन्तु पृथक् २ नदियों में समुद्र प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार स्याद्वाद दर्शनके विषय में भी जानना चाहिये क्यों कि एक वस्तु का स्यावाद मत के अनुसार मानने से जीव सम्बग दृष्टि होता है और एकान्त एक २ नय के मानने से जीव मिथ्याइष्टि हो जाता है। इन नयों के कथन करने का मुख्य प्रयोजन इतना ही है कि सामायिकाध्ययन जब उपक्रम नि. क्षेप अनगमादि के द्वारा वर्णन किये गये हों तो फिर उनको नयों द्वारा वर्णनकरना चाहिये-एक सूत्रमात्र को तथा सर्व अध्ययन को भी नयों द्वारा वर्णन करना चाहिये । एक सूत्र, जैसे "रागे आया" इत्यादि सूत्र की भी नयों द्वारा व्याख्या करनी चाहिये और सर्व अध्ययन की भी नयों द्वारा व्याख्या करनी चाहिये । यद्यपि नयोंके अनेक भेद हैं । जैसे कि यावन्मात्र वचन मार्म हैं नावन्मात्र नय हैं तथा सात नेगपादि मूल नय हैं वा द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक वा शान नय, क्रिया For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 323 324 325 326 327 328 329