Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 322
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [श्रीमपनुयोगद्वारसूत्रम् ] सिद्ध हुआ कि सम्पूर्ण भाव ही एवंभूत नय को उपादेय हैं क्योंकि एवं नाम है चेष्टादि का और भूत नाम है प्राप्त होने का । तब दोनों के मिलने से एवंभूत शब्द की सिद्धि हो गई है। इस प्रकार एवंभूत नय का मन्तव्य दिखलाया गया। सो सात ही नए साधारण रूप में एकान्त पक्षी होने से दुर्नय कहे जाते है। और अनेकान्त रूप होने से सुनय होते हैं। फिर सुनयों के मिलने से स्यावाद (जैन) मत बन जाता है अर्थात् सुनयों के समूह का नाम स्याद्वाद (जैन) मत है सो प्रसंगवशात् दुर्नय, नय, और प्रमाण का किंचित विवरण दिखलाते हैं___सदेव सत्स्यात्सदिति त्रिधार्थो, मीयेत दुर्णीतिनयप्रमाणैः । यथार्थदर्शी तु नयप्रमाणपथेन दुर्णीतिपथं त्वमास्त्व १॥" अर्थात्-पदार्थों का निर्णय तीन प्रकार से होता है-दुनय, नय और प्रमोण से । सत् यह नपुन्सक लिंगीय शन्द दुर्नय का बाधक है और सत् शम ही सुनय का बोधक है । स्यात् सत् यह शब्द प्रमाण का वाचक है । एकान्त वस्तु का मानना दुर्नय है और अस्ति शब्द के साथ वस्तु स्वरूप का कथन करना सुनय का लक्षण है । स्यात् सत् शब्द से वस्तु का स्वरूप कथन करना प्रमाण का लक्षण है । जैसे कि-स्यात् अस्ति घटः, इत्यादि। क्योंकि इस प्रकार से किसी भी वस्त के साथ विरोध भाव नहीं होता। इसी प्रकार सत्व स्वरूप असरव स्वरू; नित्य स्वरूप, अनित्य स्वरूप; उपक्त, अव्यक्त,व्यक्ताव्यक स्वरूप; सामान्य स्वरूप, विशेष स्वरूप इत्यादि अनेक धर्म दुर्नय, नय और प्रमाण से वर्णन किये जाते हैं । स्तुतिकार कहते हैं कि हे जिनेन्द्र ! दुर्नयों के निरा. करण में प्रापई समर्थ हैं; अन्य कोई भी वादी दुर्नयों का मार्ग निराकरण नहीं कर सकते और हे प्रभो! नय और प्रमाण से आपने ही दुर्नयों के मार्ग को सुमार्ग बना दिया है । इस लिये हे नाथ ! आप यथार्थदर्शी हैं, अन्य कोई भी वादी आप के समान शानयुक नहीं है। और जो नय को प्रमाण तुल्य वर्णन किया है वह अनुयोगद्वार की व्याख्या की सिद्धिके लिये ही है। क्योंकि अनुयोगद्वार के चार मुख्य द्वार हैं । जैसे कि - उपक्रम १, निक्षेप २, अनुगम ३ और नय ४। अथ दुर्नयों के बोध के वास्ते प्रथम नय का विवरण किया जाता है जो अनन्त धर्मात्मक वस्तु को एक अंश से वर्णन करे उसे ही नय कहते हैं। इस प्रकार अनन्त नय सिद्ध होते हैं । इस में वृद्धवाक्य की प्रमाणता For Private and Personal Use Only

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