Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 320
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ श्रीमवनुयोगद्वारसूत्रम् ] ३१५ एक स्वभाव अनेक स्वभाव को त्याग कर स्वयं स्थित है और अपने स्वभाव में सर्व पदार्थ विद्यमान हैं। जैसे कि-परमाणु नित्य होने पर भी समूह रूप होकर घटादि कार्य बन जाते हैं परन्तु घटादि के होने पर भी परमाणु स्वभाव में स्थित रहते हैं । इस लिये वर्तमानकालग्रोही ऋजुसून नय है। शव आक्रोशे धातु से 'शब्द' शब्द की उत्पत्ति होती है जिसका अर्थ है कि जो उच्चारण किया जाय उसे शब्द कहते हैं । इस नय में शब्द प्रधान और अर्थ गौड़ रूप माना जाता है । इस लिये यह नय जुसूत्र नय से विशेषतर वर्तमानग्राही है । जैसे कि- ऋजुसूत्र के मत में लिंगभेद होने पर भी अभेद रूप शब्द माने जाते थे किन्तु इस नय के मन्तव्य में लिंगभेद के साथ ही अर्थ. भेद भी माना जाता है। जैसे कि--तट:---तटी--तटम्, गुरुः--गुरू--गुरुषः, पुरुषः--पुरुषौ--पुरुषाः इत्यादि । फिर इस नय में नाम स्थापना द्रव्यादि को भी वस्तु नहीं माना जाता क्योंकि वे कार्य करने में असमर्थ हैं । इस लिये भावप्रधान है। भाव से ही क र्यसिद्धि होती है । नाम, स्थापना, द्रव्य और श्रप्रमाण हैं । उनले कार्य की सिद्धि नहीं है सो प्रसंगवशातू इन दोनों नयों के मत से चार निक्षेगे का किंचित् स्वरूप यहां लिखा जाता है। सब वस्तुएं नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से युक्त हैं। ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिस के चार निक्षेप न हो सके। नाम नय का मन्तव्य है कि--जो वस्तु है वह सर्व नाम रूप है। बिना नाम कोई भी वस्तु नहीं है और नाम विना वस्तु ग्रहण भी नहीं हो सकती इस लिये सर्व वस्तुएं नाम रूप है। जैसे कि--मृत्तिका से घट की उत्पत्ति है फिर वह घट मृत्तिका के ही नाम से बोला जाता है और नाम विना संशय हो जाता है इस लिये नाम रूप वस्तु का मानना ही ठीक है। स्थापना नय का मन्तव्य है कि सर्व वस्तु स्थापना रूप है । बिना आकार कोई भी वस्तु नहीं है। स्थापना में ना रूप वस्तु नहीं होती : जो वस्तु है श्राकार रू: है और आकार के विना नाम होना ही असंभव है। इस लिये सर्व वस्त स्थापना रूप है । द्रव्य नय का मन्तव्य है कि सर्व वस्तु द्रव्य रूप है । क्यों कि जैसे श्राकार बिना नाम नहीं हो सकता उसी प्रकार द्रव्य बिना स्थापना नहीं हो सकती । इस लिये स्थापना रूप वस्तु नहीं है किन्तु द्रव्य रूप वस्तु है। भाव नय का मन्तव्य है कि द्रव्य रूप वस्तु नहीं है, अपि तु भाव रूप वस्तु है क्यों कि सर्व प्रकार से विचार करने से अंतिम भाव की ही सिद्धि होती है किन्तु भूत भविष्यत् के भाव अप्रगट हैं इस लिये वर्तमान काल के हो भाव का ग्रहण करना चाहिये जो कि प्रगट हैं। For Private and Personal Use Only

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