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[ उत्तरार्धम्] अकल्पनीय है । क्यों कि उस में प्रमाण नहीं है और व्यवहार मुख्य होता है, जैसे घटादि पदार्थों में ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, स्पर्श होते हैं । तथापि जिस वर्ण की अतीव मुख्यता होगी वहीं वर्ण व्यवहार में उपयोगी होता है । जैसे-नील घट, इत्यादि । यदि सामान्य स्वरूप ही माना जाय जैसे कि घट व्यवहार से अकल्लीय होगा तो प्रकृति असत् हो जायगी। इस लिये व्यवहार से जो सिद्ध हो जाता है वही लोक व्यवहार होने से सब गव्यों में विद्यमान है।
ऋजुसूत्र नय के मत में वर्तमान काल ही ग्रहणीय है । जो तत्काल उत्पन्न हुश्रा हो उसे प्रत्युत्पन्न अर्थात् वर्तमान कहते हैं । भूत और भविष्यत् , य दोनों काल वर्तमान ही सूचन करते हैं। और जो इस को ग्रहण करता है उसे प्रत्युत्पन्नग्राही कहते हैं । भूत और भविष्यत् वर्तमान काल में असद्रूर है, क्योंकि भूत काल हो चुका है और भविष्यत् उत्पन्न ही नहीं था। इस लिये ये दोनों असत् हैं । इस नय को केवल श्रुतज्ञान ही उपादेय है । अथवा जु याने सरलता अर्थात् जिल का सरल श्रुत ही उसे ऋजुन त कहते हैं । इस स सिद्ध हुआ कि जो वक्रता से रहित होकर वर्तमान काल को स्वीकार करे वही ऋजुसूत्र नय है इसमें विशेष इतना जानना चाहिये कि इस नय के मत में लिंग वचनादि अनेक भेद भिन्न रूप एक ही वस्तु मानी जाती है। इस से व्यतिरिक्त वस्तु अवस्तुरूप है । अतः भूत काल उत्पन्न वस्तु वर्तमान में अवस्तु है, वर्तमान काल में उस का विनाश है तथा भविष्यकाल की वस्तु वर्त: मान में अनुत्पन्न है, इस लिये वह भो अवस्तु हो है और परसम्बन्धी वस्तु स्वकार्य में साधक नहीं होने से अवस्तु है। अतः इस लिये वह भी आकाश. पुष्पवत् है । तथा जो वर्तमान काल में वस्तु है वही सद्रूप है । यद्य पलिंग भेद तो है, परन्तु यह अपने गुण को नहीं छोड़ती। इस नय के मत में नाम स्थापनादि द्रव्य इन्द्रादि वस्तु नहीं है क्यों कि भूतकाल का विनाश है और भविष्यत् काल अनुत्पन्न है, केवल वर्तमान काल में तण रूप है क्यों कि जो वस्तु शक्ति कर नहीं होती वह अथ क्रिया भी नहीं कर सकती अतः जो अर्थ क्रिया करने में अशक्त है वह अयस्तु रूप है । जो वत्त मान में क्रिया करे वही वस्तु होती है । यदि अंश रहित वस्तु मानी जाय तब युक्ति से असंगत सिद्ध होती है क्या कि एक स्वभाव रूप वस्तु का अनेक स्वभाव वाला हो जाना बिना देश प्रदेश के माने असिद्ध है । यदि ऐसे माना जाय कि वस्तु ह. अनेक स्वभाव रूप है सो वह अयुक्त है, परस्पर विरोध होने के कारण से। जैसे कि
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