Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 321
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ [उत्तरार्धम्] इस प्रकार ऋजसूत्र और शब्द इन दोनों नयों का मन्तव्य है । इन नयों के मत में भाव निक्षेप ही माननीय है, अन्य नहीं । अन्य निक्षेप द्रव्य नयों को माननीय हैं, पर्यायार्थिक नय तो भाव पर आरूढ हैं । परन्तु शब्द नय ऋजुसूत्र से विशेषतर वर्तमान काल में आरूढ है। जैसे कि-लश लिंग वचन से भाषण करना शब्द नय को उपादेय है तथा इन्द्रः शकः पुरंदरः तथा घटः कुटः कंभः इत्यादि । सो शब्द नय के मतमै शब्द प्रधान और अर्थ गौण रूप होता है। ___समभिरूढ नय के मत में वस्तु स्वगुण में प्रवेश करतो है । यदि एक शब्द में अन्य शब्द एकत्व किया जाय तब वह अवस्तु रूप हो जाता है । जैसे किइन्द्र को शक कहना । यद्यपि ये दोनों पर्याय नाम हैं किन्तु अर्थभेद अवश्य है। यथा-इन्दतीति इन्द्रः, शक्नोतीति शक्रः, पुरं दारयतीति पुरंदरः इत्यादि । सो इस नय के मत में शब्द भिन्न होने से अर्थ मिन्न अवश्य होता है नहीं तो शब्द एक होने से प्रति प्रसंग दोष को प्राप्ति होगी। इस नय के मत से इन्द्र से शक शब्द उतना ही भिन्न है जितना कि घट से पट और अश्व से हस्ति, इस लिये भिन्न २ शब्द के भिन्न २ अर्थ इस नय को स्वीकार हैं । तात्पर्य यह हुआ कि एक वस्तु के अनेक नामाइस को सम्मत नहीं है क्यों कि समभिरूढ़ नय का अर्थ यही है कि नाम के भेद होने से वस्तु का भेद होता है । इस प्रकार समभिरूढ नय का विवरण होने पर एवंभूत नय के विषय में कहते हैं एवंभूत के मत में व्यसन और अर्थ के युगपत् होने से वस्तु के स्वरूप को अंगीकार किया जाता है। जैसे कि-व्यञ्जन नाम है शब्द को सो शब्दसे जो वस्तु का प्रभिधेय अर्थ है उसको प्रगट किया जाय, उसे ही एवंभूतनय कहते हैं। पथा घट चेष्टायां धातु से घट शब्द की उत्पत्ति है। सो जब घट पूर्ण जल से भरा हुआ स्त्री के मस्तक पर होता है तभी उसको घट कहा जाता है, अन्यत्र नहीं। इस लिये वस्तु का जिस समय पूर्ण गुण उस वस्तुमे प्राप्त हो उसी समय एवंभूत नय के मत से उसकी वस्तु माना जाता है। ___ यहां यदि ऐसे कहा जाय कि-मत और भविष्यत् काल की चेष्टा को अंगीकार करके समुश्च य रूप में उसे घट क्यों नहीं माना जाता ? इसका उत्तर यह है कि-भूतकाल की चेष्टा विनाशरूप है और भविष्यत् काल की चेष्टा अनुत्पन्न है। इस लिये ये दोनों चेष्टाएं शश-गवत् होने से अमाननीय हैं। क्यों कि-यदि इस अपेक्षा से ही घट मानना है तब मृपिंड को भी घट संवा प्राप्त हो जायगी तथा प्रसंगवशात् अन्य पदार्थ भी घट संबक होंगे इसलिये For Private and Personal Use Only

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