Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 314
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ३०६ तथा ( सापि ) शेष संप्रहादि ( नया ) नयों का ( लक्खणं) लक्षण (इमो ) इस प्रकार ( सुणह ) श्रवण कर ( वोच्छं ॥१॥ ) मैं तुम को सुनाऊंगा# ॥१॥ #नयों के मूल दो भेद हैं, जैसे कि द्रव्य नय और पर्याय नय । द्रव्य नय द्रव्य को और र्याय नय पर्याय को स्वीकार करते हैं । प्रथम के तीन नय द्रव्य नय कहलाते हैं और शेष पर्याय नय माने जाते हैं । संग्रह नय सामान्य प्रकार से स्वरूप को मानता है । लौकिक में भी घट, कुंभ, पट, इन से भिन्न २ काम लिये जाते हैं तथ कूप चलता है, ग्राम श्रा गया, पर्वत जलता है इत्यादि क्रियाओं के देखने से सामान्य स्वरूप का प्रभाव हो विशेष स्वरूप की प्रतीति होती है । इसलिये व्यवहार नय विशेष स्वरूपतया सब द्रव्यों में विद्यमान रहता है। 1 ऋजुसूत्र नय के मत में भूतकाल त्रिनाश हो चुका है और भविष्यत् श्रविद्यमान है, इसलिये यह वर्त्तमानकालवाडी है । ऋजु नाम है कुटिलता - सरलता का और सूत्र नाम है गून्थने का । श्रतएव जो ऋजुभाव से गून्थे वही ऋजुसूत्र नय है । भिन्नलिङ्ग भिन्नवचनैश्व शब्देरे कमपि वस्त्वभिधीयत इति प्रतिजानीते ऋजुसूत्रनयः । श्रौर इस नय के मत में लिंगभेद भी नहीं है । शप आक्रोशे धातु से शब्द बनता है जिसका अर्थ है बोलना । जो शब्द को मुख्य देखता है वही शब्द नय है । शब्दयते श्रभिधीयते वस्त्वनेनेति शब्दः - इस नय के मत में अर्थ गौणरूप होता है। क्योंकि 'पुरंदर' शब्द का प्रथं धन्य है, और 'इन्द्र' शब्द का अर्थ धन्य है । एक में अर्थ वाले शब्द में अन्य अर्थं वाला शब्द यदि प्रविष्ट कर दिया जाय तो वह ऋतु हो जाती है । तात्पर्य यह है कि जैसे नाममात्र घट शब्द का उच्चारण करने से घट का ज्ञान हो जाता है और उसी प्रकार उस का अर्थ भी प्राप्त हो जाता है, लेकिन घट चेष्टायां धातु से जो घट शब्द की उत्पत्ति हुई हैं, वह जब ही सफल होगी जब घट स्त्री के शिर पर चेष्टा रूप दृष्टिगोचर होगा । इसलिये इस नय के मत में जल से परिपूर्ण घट और स्त्री के मस्तक पर रक्खा हुआ ही घट 'घट' माना जाता I शाशपिभ्यां ददनौ उणादि । पा० ४ सू० ६७ । तमेव गणी भूतार्थमुख्यतया यो मन्यते स नयोऽप्युपचाराच्छन्दा । शौ तनूकरणे । शप् श्राक्रोशे ॥ श्राभ्यां ददनौ । शब्दो निनादः । शब्द वैरेति । पा० वैयाकरणः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शादः कर्दमशप्ययोः नडशाडाडु वलू च । पा० ४।२८८ | शाब्दलः । पकावस्य वकारः । ४।१।१७ | क्यङ् । शब्दायते शब्दं करोतीति शाब्दिको बकम् ॥ १॥" "सुयनाणे अ विउत्तं, केवले तयांतरं । श्रप्पणी य परेसिं च, जम्हा तं परिभावगं ॥ १ ॥ " "श्रुतज्ञानेच नियुक्त, केवलेशे तदनन्तरम् । आत्मनश्च परेषां च यस्मात्तत् परिभा For Private and Personal Use Only

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