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[ उत्तरार्धम् ] णायंमि गिरिहअव्वं अगिणिहअव्वमि अत्थंमि । जइअव्वमेव इइ जो, उवएसो सो नो नाम ॥५॥ सव्वेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामित्ता। तं सव्वनयविसुद्ध, जं चरणगुणट्टिओ साहू ॥ ६ ॥ से तं नए। अणुओगद्दारा सम्मत्ता (सू. १५६) सोलससयाणि चउरुत्तराणि होति उइमम्मि गाहाणं । दुसहस्समणुठ्ठ भछंदवित्तप्पमाणओ भणिओ ॥१॥ णयरमहादारा इव उवक्कमदाराणुओगवरदारा ।
भक्खरबिंदुगमत्ता लिहिया दुक्खक्खयट्टाए ॥२॥ गाहा १६०४, अनुष्टुप ग्रन्था २०५, अणुओगदारं सुत्तं समत्तं ॥
पदार्थ-(से कि त णए ?) नय किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से वर्णन किया गया है ? (गए)जो एक अंश लेकर वस्तुके स्वरूप का वर्णन करे उसे नय कहते हैं, और वह ( सत्त मूलग्णया परगत्ता,) सात प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, अर्थात् मूल नय सात होते हैं (तं जहा) जैसे कि - (ने मे १) नगम नय १ (साद २) संग्रह नय २ ( ववहारे ३ ) व्यवहार नय ३ ( उजुसुए ४) ऋजुसूत्र नय ( स ) शब्द नय ५ ( समभिरूड़े ) समभिरूढ़ नय ६ और (एवंभूए) एवंभूत नय ।
अब नैगम नय का स्वरूप वर्णन किया जाता है, (णेगेहि माणेहि) जो अनेक मानों से (मिणइत्ति) वस्तु के स्वरूप को जानता है वा अनेक भावों से वस्तु का निर्णय करता है इस प्रकार से ( नेगमस्स य ) नैगभनय की (निरुत्ति .) निरुक्ति व्युत्पत्ति है.
*णीय प्रापणे धातु से नय शब्द की उत्पत्ति है इसलिये जो वस्तु के स्वरूप को प्राप्त करे उसे ही नय कहते हैं ।
नि उपसर्ग पूर्वक गम्तृ गतौ धातु से नैगम शब्द की सत्ति का पूर्व में पूर्ण विवेचन किया जा चुका है। जैसे कि-लोगे वसामि, इत्यादि, इसी को नैगम नय कहते हैं अथवा नैगम मय को यह भी निरुक्ति है कि न एकः नैकः । निपातनात सिद्धम् ॥
विस्तारपूर्वक वर्णन श्रावश्यकनियुक्तिटीका से जानना चाहिये ।
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