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[ उत्तराधम्] उन नहीं जाने हुए को (अहिगमणट्टाए) जानने के लिये ( पदं पदेणं ) पद पद से ( वनइस्सामि ) वर्णन--व्याख्या करूँगा अर्थात् पद २ की व्याख्या करूंगा।
(* संहिया य) जैसे सहिता-अस्खलितपदों का उच्चारण करना यथा “करोमि भयान्त सामायिकम्" (पदं चेव) और पद से जैसे 'करोमि' द्वितीय पद है । सामायिकम् तृतीय पद है, तृतीय भेद में (पयत्थो) पदार्थ पदों का भिन्न २ अर्थ करना, (पयविग्गहो) पद विग्रह अर्थात् पदों का समास करना-जो समासान्त पद हों उन्हें समासान्त ही कहना चाहिये (चालणा य) और चालना-सूत्र के अर्थ जानने की इच्छा से युक्ति का प्रकाश करना उसे चालना कहते हैं, (पसिद्धी य ) और प्रसिद्धि--प्रथम सत्र अर्थ में शंका दिखलाकर फिर पंचावयव उस शंका का समाधान करना उसे प्रसिद्धि प्रत्यवस्थान कहते हैं, इस लिये (छव्विहं लक्षणं विडि) षट् प्रकार के लक्षण जानना, इस प्रकार सूत्र की व्याख्या करने से सूत्रानुगम की पूर्ति हो जाती है, (से तं सुत्तप्फासियनिज्जुतिअणुगमे ।) यही पूर्वोक्त सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम है, और ( से तं निज्जुत्तिश्रणुगमे) यही नियुक्त्यनुगम, है, ( से तं अणुगमे । ) तथा यही अनुगम की व्याख्या है।
___ भावार्थ-सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति अनुगम उसे कहते हैं जो सूत्र अस्था. लित अमिलित अन्य सूत्रों के पाठों से अनलंकृत, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण कोष, कंठ और ओष्ठों से विप्रमुक्त और गुरु के मुख से ग्रहण किया हुआ-उच्चारण किया गया हो । क्यों कि
अप्पगंथमहत्थं, बत्तीसादोषविरहियं जंच । लक्खगा जुत्त सुत्त, अट्ठहि य गुणेहि उववेयं ॥१॥
अर्थात् जो अल्प ग्रन्थ और महार्थ युक्त (समाहार द्वन्द्व करने से इस शब्द की सिद्धि होती है, जैसे कि-उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् इत्यादि सूत्र में ) हो, ३२ दोषों से रहित हो, आठ गुण सहित और लक्षण युक्त हो, वह सूत्र है, जैसे कि
अलियमुवधायजणयं, निरस्थयमवस्थयं छलं दुहिलं । निस्सारमाध्यमूणं, पुणरुत्तं वाहयमजुत्त ॥१॥
* हितते वा । शा० । अ० २ । पा० २ । सू० ७१ । समः हित्तततयोरुत्तरपदयो ग्वा भवति ॥ सहितम् ॥ संहितम् ॥ सततं संततम् । सातत्यमिति प्यणि नित्यं लुक व्यवस्थितविभाषा. त्वात । स्त्री चेत संहिता।
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