Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 310
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] "निहोसं १ सारवंतं च २, हेतुजुत्तम ३ लंकियं । उवणीयं ५ सोवयारं च ६, मियं ७ महुरमेवय ॥१॥" अर्थात् सब दोषों से रहित १, सारवान् अर्थात् गोशब्द समान बहुत अर्थ युक्त २, अन्वय और व्यतिरेक हेतुओं से युक्त ३, उपमादि अलंकारों से विभूषित ४, उपनय से युक्त अर्थात् दृष्टान्त को दान्तिकतया सिद्ध करना, उसे ही उपनीत कहते हैं ५, संस्कृतादि भाषाओं से युक्त और प्रामीण भाषाओं से वर्जित, इसको सोपचार कहते हैं ६, अक्षरादि के प्रमाण से नियत ७ और जो सुनने में मनोहर हो, उसे मधुर वर्ण युक्त जानना चाहिये ८, जिस में पूर्वोक्त गुण होते हैं, उसे ही सूत्र कहते हैं। तथा किसी २ आचार्य के मत से पट गुण होते हैं, जैसे कि"अप्प म्वर १ मसंदिद्ध २, सारवं ३ विस्सोमुहं ४। श्रस्थोभ ५ मणवज्जं च ६, सुत्त सम्बएणुभासियं ॥ २॥" अल्पाक्षर अर्थात् मिताक्षर हो, जैसे सामायिकसूत्र १,संदेहरहित हो क्यों कि सैन्धव शब्दवत् संदेहयुक्त न हो, सैन्धव शब्द लवण, वस्त्र, अश्वादि अनेक अर्थो में व्यवहृत है २, सारवत्-गौ शब्द के समान बहुत अर्थ वाला हो ३, प्रत्येक सूत्र चरणानुयोगादि चार अनुयोग द्वारा सिद्ध है तथा एक शब्द के अनन्त अर्थ होने से उसे विश्वमुख कहते हैं, यथा “धम्मो मंगलमुक्किट्ठ इत्यादि, श्लोके च चारोऽप्यनुयोगा व्याख्यायन्ते" जैसे-धम्मो० इस श्लोक से चारों ही अनुयोगों की व्याख्या होती है ४, चकार वकारादि निपातों से रहित ५ और अनवद्य वाक्य अर्थात् पापोपदेश से रहित हो ६, यह षट गुण पूर्वोक्त आठ गुणों में समवतार हो जाते हैं। संग्रह नयसे आठ गुण षट् गुणों में समवतार हो जाते हैं । इस प्रकार शुद्ध सूत्र का शुद्ध सच्चारण करने से मालूम होता है कि यह पद स्वसिद्धान्त जीवादि पदार्थ का बोधक है, और ईश्वरादि कृत परसमय का पद पर सिद्धान्त का बोधक है। स्वसमय का बोधक पद मोक्ष पद होता है और परसमय का बोधक पद बन्ध पद कहा जाता है। कर्मबन्धन का कारण अथवा कुवासनादि हेतुमों से बन्ध पद, कर्म और सबोध का कारण होने से किये हुए का क्षय रूप कारण सो मोक्ष पद होता है। इसी प्रकार सामायिक का प्रतिपादक सामायिक पद होता है । सामायिक से व्यतिरिक्त अर्थों का बोधक नोसामायिक पद होता है । इस प्रकार सत्र उच्चारण करने से ज्ञान की प्राप्ति सिद्ध की गई है । फिर जब सूत्रोच्चारण किया गया तब For Private and Personal Use Only

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