Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 309
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०४ [ उत्तराधम् ] २६ श्रर्थापत्ति दोष -जिस स्थान पर अर्थापत्ति करने से अनिष्ट फल की प्राप्ति हो जाए वह अर्थापत्ति दोष होता है। जैसे कि गृहकुक्कटो न हन्तव्यः अर्थात् घरका मुर्गा न मारना चाहिये, इस कथन से अर्थापत्ति होती है । क्योंकि - शेषघातोऽदुष्ट इत्यापतति शेष को मारना चाहिये, ऐसा सिद्ध होता है । अन्य स्थान पर कुक्कुट का वध निर्दोष सिद्ध होता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ असमास दोष -जिस स्थान पर जिस समास की प्राप्ति हो उस स्थान पर उस समास को छोड़कर अन्य समास कर देवे तो असमासदोष होता है। २८ उपमा दोष --हीन उपमा । जैसे कि मेरुः सर्षपोपमाः । अथवा अधिक उपमा - सर्पपो मेरुसनिभः । अथवा अन्य विपरीत उपमा करना, जैसे किमेरुः समुद्रोपमः । यह उपमा दोष होता है । २६ रूपक दोष -- स्वरूप को छोड़कर उसके अवयवों का प्रतिपादन करना, जैसे कि -- पर्वत के निरूपण को छोड़ कर शिखर आदि उसके अवयवों का निरूपण करना, या अन्य कोई समुद्र के अवयवों का निरूपण करना । ३० निर्दोश दोष -- जिस वचन का उच्चारण कर दिया है फिर उसका एक ब्राज्य न करना । जैसे कि -- देवदतः स्थाल्यामोदनं पचति, इत्यभिधातव्ये पचति शब्दं नाभिधत्ते । देवदत्त स्थाली में चांवल पकाता है, ऐसा कहना लेकिन वहां पर पचति नहीं कहना । ३१ पदार्थ दोष -- जिस वस्तु के पर्याय को एक पदार्थान्तर मानना पदार्थदोष होता है । जैसे कि "सतो भावः" सत्तेति कृत्वा वस्तुपर्याय एव सत्ता, सा च वैशेषिकैः षट्सु पदार्थेषु मध्ये पदार्थान्तरत्वेन कल्प्यन्ते तच्चायुक्तम् । वस्तूनामनन्त पर्यायत्वेन पदार्थानस्यप्रसङ्गादिनि । इस कथन से वस्तु का सत्ता भाष सिद्ध होता है, और वैशेषिक दर्शन ने षट् पदार्थ के अंतर्गत सत्ता मानी है । अतः उनका यह एकान्त कहना अयुक्त है । ३२ सन्धिदोष-जहां पर सन्धि होना चाहिये, वहां पर सन्धि नहीं करना, अथवा करना तो ग़लत करना, यह सन्धिदोष है । भरतो वन्दितु गच्छति - भरत बन्दन करने जाता है। ऐसा कहते हुए भरतः वन्दितु ं कहना । इन बत्तीस दोष से जो रहित है उसे ही लक्षण युक्त सूत्र कहते हैं, तथा भ्राढ गुणों से जो यक्त है वही लक्षण युक्त सून्न होता है, जैसे कि For Private and Personal Use Only

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