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[ उत्तरार्धम्]
हे सुन्दर लोचन वालो खाओ पीओ क्योंकि यह श्रेष्ठ शरीर चले जाने से फिर नहीं है । हे डरपोक ! गया हुश्रा शरीर फिर न आयगा यह कलेवर सिर्फ समूह रूप है।
७निःलारवचन -- युक्ति रहित होने से निस्लोरवचन दोष होता है। जैसे-वेदवाक्य तथा मथ्या वचन ।
- अधिक वचन--जिसमें पदादिकों की मात्रा अधिक हो । बैसे किअनित्यः शब्दः कृतकत्वप्रयत्नानन्तरीयकत्वाभ्यां घटपटवत् । इस स्थान पर एक साध्य वस्तु में दो हेतु और दृष्टान्त दिये गये हैं। इस लिये अधिक दोष है। एक की साधना में एक ही हेतु और एक ही दृष्टान्त होना चाहिये । यहां पर दो होने से अधिक हैं ।
हीनवचन-जिसमें पदों के अक्षरों की मात्रा न्यून हो उसे हीनवचन कहते हैं । तथा वस्तु में हेतु या दृष्टान्त की न्यूनता हो उसे भी हीनवचन कहते हैं, जैसे कि-अनित्यः शब्दः घटवत् तथा अनिन्यः शब्दः कृतकत्वात् ।
१० पुनरुक्तदोष--पुनरुक्त दोष के दो भेद हैं । एक शब्द से, और द्वितीय अर्थ से । शब्द से वह है कि जोशब्द एकबार उच्चारण किया गया होफिर उसीको उच्चारण करना। जैसे कि-घटो घटः। अर्थ से वह है. जैसे कि-घटः कुटः कुभः। तथा अर्थापन्न भी पुनरुक्त दोष में गर्भित है। जैसे कि-पीनो देवदत्तो दिवा न भुक्त। अर्थादापन्न रात्रौ भुक्त इति । इस स्थान पर श्रापन्नार्थ के लिये साक्षात्
रूप का ग्रहण करना भी पुनरुक्त दोष है । पीन देवदत्त दिन में नहीं . खायगा अर्थात् रात्रि में खायगा । * ११ अव्याहत दोष-जिस स्थान पर पूर्व वचन से उत्तर वचन व्याख्यान कारी प्राप्त हो उसे अव्याहत दोष कहते हैं, जैसे कि--कर्म चास्ति फलं चास्ति कर्ता न स्वस्ति कर्मणामित्यादि । कर्म और फल दोनों है, लेकिन कर्मों का कर्ता नहीं है।
१२ अयुक्तदोष-जो वचन युक्ति से रहित हो, अथवा युक्ति को सहन भी न कर सके, उसे अयुक्तदोष कहते हैं, जैसे कि--तेषां कटतटभ्रष्टैर्गजानां मदबिन्दुभिः प्रावर्तत नदी घोरा हस्त्यश्वरथवाहिनी।
१३ क्रमभिन्न दोष-जो अनुक्रमता पूर्वक न हो वह क्रमभिन्न दोष होता है, जैसे कि--स्पर्शनरसनधाणचक्षुःश्रोत्राणामाः स्पर्शरसगन्ध रूप शब्दा इति वक्तव्ये स्पर्शरूपशब्दरसगन्धा इति ब्र यात् । उलट पुलट बोले ।
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