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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् हिगारा अहिगया भवति, केइ अत्थाहिगारा अणहिगया भवंति, ततो तेसि अणहिगयाणं अहिगमणट्टयाए पदं पदेणं वन्नइस्सामि ।
संहिया य पदं चेव, पयत्थो पयविग्गहो।। चालणा य पसिद्धी य, छव्विहं विद्धिलक्खणं ॥१॥
से त सुत्तप्फासियनिज्जुत्तिअणगमे, से त निज्जु. त्तिअणुगमे, से त अणुगमे [सू० १५५]
पदार्थ-(से किं तं सुतप्कासियनिज्जुशिश्रणु गमे ? ) सूत्रस्पशिकनियुक्त्यनुगम किसे कहते हैं ? सुत्तष्काप्तिअनिज्जुत्ति अणुगमे , जो नियुक्ति व्याख्यान रूप सूत्र को स्पर्श करती हो उसे सूत्रस्पर्शिकनियुक्त्यनुगम कहते हैं, जैसे कि-(सुशं. उच्चारेयव्वं ) सूत्र का उच्चारण करना चाहिये (अक्खलियं) अस्खलित (अमिलियं) परस्पर मिले हुए वर्ण न हों ( अबच्चामेलिअं) समाप्त सम्बन्धी सूत्रों के पाठ सहित हों (पडिपुरणं) प्रतिपूर्ण हो (पडिपुराणघोस) प्रतिपूर्ण घोष हो (कठोढविप्पमुक्क) कंठ
और ओष्ठ से अलग हो (गुरुवायणोवगयं ) गुरु को वाचना से उपगत-- प्राप्त हुआ हो ( तो तत्थ ) तत्पश्चात् ( णजिहिति ) जाना जायगा कि यह (ससमय पयं वा) जीवादि पदार्थों का प्रतिपादक रूप स्वसमय का पद है, अथवा (पग्समयपयं वा) । ईश्वरादि को प्रतिपादन किया हुआ परसमय पद है, या (वायं वा) पर समय का पद मिथ्यात्व रूप होने से बंध पद है, या (मोक्खपयं वा) मोक्षपर अर्थात् सद्वोध का कारण कर्म क्षय के करने वाला मोक्ष पद है, या (सामाइयपयं वा) सामा यिक का प्रतिपादन करने वाला सामायिक पद है अथवा गोसामाइयपयं वा ) सामायिक से व्यतिरिक्त नारक तिर्यगादि का बोधक नोसामायिक पद है अथवा (तओ तम्मि) तत्पश्चात् सूत्र के (उच्चारिए समाणे) उसके समान उच्च रण होने से (केसिं च णं भगवंताणं) कितनेक भगवन्तों के-साधुओं के ( केइ अत्याहिगारा ) कितनेक अधिकार (अहिगया) पूरे जाने हुए (भवंति, होते हैं और (केइ) कचिद् (प्रत्याहिगारा) अर्थाधिकार (अणहिगया) नहीं जाने हुए (भवंति) होते हैं, ( तो तेसिं अणहियाणं ) तत्पश्चात
अन्ये तु व्यचक्षते-प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशलक्षगाभेदभिन्नस्य बन्धस्य प्रतिपादकं पदं बन्धपदम् ।
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