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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ]
२९७ जैसे कि-सम्यत्तवसामायिक, श्रतसामायिक और चारित्रसामायिक ।
(१४) किस जीव को सामायिक होती है ? जिसकी आत्मा सब प्रकार के व्यापार से निवृत्त हुई हो अर्थात् समभाव युक्त हो।
(१५) सामायिक कहां कहां होती है ? क्षेत्र, दिशा, काल, गति, भव्य, संधी, सम्यग्दृष्टि, श्वासोच्छवास और आहारक आदि अनेक हैं।
(१६) किस किस में सामायिक होती है ? सब द्रव्यों में होती है, लेकिन भुत सामायिक सब द्रव्य और चारित्र सामायिक सब पर्यायों में नहीं होती, देशबिरति में दोनों का ही निषेध किया गया है।।
(१७) किसको सामायिक हो सकती है ? मोनुष भव क्षेत्र, जाति, कुल, अप, आरोग्य, आयु और बुद्धि, ये सामायिक के कारण हैं * |
(१८) कितने काल तक सामायिक रह सकती है ? ६६ सागर पर्यन्त । लेकिन चारित्र सामायिक देश ऊन पूर्व क्रोड़ वर्ष तक होती है।
(१६) सामायिकधारी वर्तमान काल में एक साथ कितने होते हैं ? सम्यक्व देश बेर ते सामायिक वाले पल्य के असंख्यातवें भाग होते हैं।
(२०) सामायिक का अन्तर काल कितना होता है ? एक जीव की अपे वा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अर्द्ध पुद्गल परावर्त देशोन अन्तर बाल होता है।
(२१) बिना अन्तर कितने काम तक सोमायिक ग्रहण करने वाले होते हैं? सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक वाले प्रावलिका के असंख्यातवें भाग में होती है। पाठ समय तक चारित्र सामायिक वाले होते हैं, और जघन्य से दो समय तक ही होते हैं।
(२२) कितने भाव पर्यन्त सामायिक रह सकती है ? पल्य के असख्या. त भाग मात्र में सम्यत्त्व देशविरति होती है । आठ भाव पर्यन्त चारित्र सामायिक होती है, और अनन्त काल तक श्रुत सामायिक होती है।
"सव्वगयं सम्म, सुय चरित्ते न पज्जवा सव्वे । देसविरई पडुचा दुराहवि पडि सेहणं कुजा ॥१॥"-सर्वगतं सम्यक्त्वं श्रुते चारित्र न पर्यवः सर्वे । देशविरतिं प्रतीत्य द्वयोरपि प्रतिषेधनं कुर्यात् ॥१॥
*"माणुस्स खेत जाई, कुल रूवारग आठयं बुदि।"--मानुप्यं क्षेत्र जातिः, कुलं समारोग्यमायुबुद्धिः ।
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