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[उत्तरार्धम]
२१६ प्रदेश है ( से पएसे नोखंधे, ) वही प्रदेश नो स्कन्धात्मक ' है।
(एवं वयंतं सदनयं) इस प्रकार भाषण करते हुए शब्द नय को ( समभिरूढो भणइ, ) समभिरूढ नय कहता है कि-(जं भणसि.) जो तू कहता है कि (धम्मे पएसे ) धर्मास्तिकाय का जो प्रदेश है (से पएसे धष्मे) वही प्रदेश धर्मात्मक है, (जाव) यावत् ( जीवे पर ) जीव का जो प्रदेश है ( से पएसे नोजोवे, ) वही प्रदेश नोजीवास्मक है, तथा (खंधे पएसे ) स्कन्ध का जो प्रदेश है (से परसे नोखंधे,) वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है। (तं न भवइ,) ऐसा नहीं होता है, अर्थात् तेरा यह कहना युक्ति पूर्वक नहीं है, (कम्हा?) कैसे ? (इत्थं खलु) इस प्रकार से निश्चय ही (दो समासा भवंति) दोसमास होते हैं, अर्थात् यह वाक्य दो समास का है । (तं जहा-) जैसे कि-(तप्पुरिसे श्र कम्मधारए अ) तत्पुरुष और कर्मधारय, इस लिये ( ण णज्जइ) नहीं मालूम होता है कि (कयरेणं समासेणं भणसि ?) तू कौन से समास से कहता है ? (किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं ?) तत्पुरुष से या कर्मधारय से ? ( जद तप्पुरिसेण भणसि ) यदि तत्पुरुष से कहता है (तो मा एवं भणाहि,) तब ऐसा मत कह, (छह कम्मधारएणं भणसि) अथवा कर्मधारय *से कहता है (तो विसेसो भणाहि,) तब विशेषतया कहना चाहिये
* स्कन्ध द्रव्य असन्त होते हुए भी एक देशवर्ती हैं, इस लिये वही प्रदेश नो कन्यात्मक कहा जाता है। नोजीव और स्कन्ध इसी लिये कथन किये गये हैं। जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य पृथक् २ अनन्त हैं।
+'त पुरुष समास माननेसे 'धर्म प्रदेश' में भेदापत्ति होती है, यथा 'कुण्डे बदराणि ।' प्रदेश और प्रदेशी का अभेद होता है। कारण कि अभेद में भी सप्तमी होना चाहिये, जैसे कि 'घटे रूपम्' इत्यादि, यदि ऐसो कहें तब दोनों पद सप्तम्यन्त होने से संशय रूप दोषापत्ति होती है, जैसे कि'धम्मे पएसे ।' इस लिये तत्पुरुष के मानने से दोषापति अवश्य है। प्रथम तो प्रदेश प्रदेशी के भिन्न होने की और दूसरी संशयात्मक होने की
* यदि 'धम्मे पएसं' में धर्म शब्द सप्तम्यन्त माना जाय तन्त्र-'हलताः सप्तम्यः । २ ।२ ।१०।' सूत्र की प्राप्ति होती है, जैसे-'वने हारिद्रका ।' यदि धर्म शब्द प्रथमान्त माना जाय तब 'विशेषणं व्यभिचार्येकार्थं कर्मधारयश्च । २ । १:५८ ।' सूत्र से कर्मधारय समास होता है, जैसे 'धर्मश्च स प्रदेशश्च स इति ।' इस लिये इस उपचार से भी दोनों समासों की और अनुकूल विवक्षा से भी दोनों समासों की प्राप्ति होती है। जैसे-'अकामे ऽमृद्ध मस्तका० । २ । २ । १२ ।' इस सूत्र से 'कण्ठे कालः' इत्यादि प्रयोग सिद्ध होते हैं।
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