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[श्रीमद्नुयोगद्वारसूत्रम् ] और उनका जो परिमाण हो उसे कालिक अ तपरिमाण * संख्या कहते हैं, और वह (अणेगविहा पएणत्ता,) अनेक प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि(पजवसंखा) पर्यव-पर्याय संख्या, ( अक्खरसंखा ) अक्षर संख्या, (संघायसंखा) संघात संख्या, ( पयसंखा ) पद सख्या, (पायसंखा) पाद संख्या, (गाहासंखा) गाथा संख्या, ( संखायसंखा) संख्यात संख्या, (सिलोगसंखा) श्लोक संख्या, ( वेढसंखा ) वेष्टक संख्या, (निज त्तिसंखा) नियुक्तिसंख्या , (अणुशोगदारसंखा) अनुयोगद्वार संख्या, (उदेसगसंखा ) उद्देश संख्या, ( अज्झयणसंखा ) अध्ययन संख्या, ( सुयखंघसंखा) श्रुतस्कन्ध संख्या, अंगसंखा) अंगसंख्या, (से तं कालिप्रसुअपरिमाणसंखा ।) यही कालिक श्रु तपरिमाण संख्या है।
(से किं तं दिठिवायसुअपरिमाणसंखा ?) दृष्टिवादश्रुतपरिमाण संख्या किसे कहते हैं ? (दिट्टि वायसुअपरिमाणसंखा) दृष्टिवादश्रु तपरिमाण संख्या ( भणेगविहा पएणत्ता,) अनेक प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा- ) जैसे कि--(पजवसंखा) पर्यव-पर्याय संख्या (जाव अणुयोगदारसंखा) यावत् अनुयोगद्वार संख्या, (पाहुडसंखा) प्राभृति संख्या, ( पाहुडियासंखा ) प्राभतिका संख्या, (पाहुडपाहुडियासंखा) प्राभूत प्राभृतिका संख्या, ( वत्थुसंखा ) वस्तु संख्या ( से तं दिटिवायमुअपरिमाणसंख।। ) यही दृष्टिवादश्रुतपरिमाण संख्या है और (से तं परिमाणसंखा ।) यही परिमाण संख्या है।
* कालिकश्च तपरिमाणसंख्यायां पर्यवसंख्या इत्यादि, पर्यवादिरूपेण-परिमाणविशेषेण कालिकश्रुतं संख्यायत इतिभावः । इनका नाम अन्वर्थ है । जैसे-१-जिसमें पर्यायौंको संख्या हो। २-जिसमें अक्षरों की गणना हो । ३-द्वयादि संयोगादि व्यंजनों की गणना हो। ४-जिसमें वाक्यों के पदों की संख्या हो । अथवा- 'सुतिङन्तं पदम् । १ । ४ । १४ । पा० ।' जिस के अन्त में सुप् और तिङ हो उसे पद जानना चाहिये । ५-श्लोकादि के चतुर्थांश को पाद कहते हैं । इनकी जिसमें संख्या हो उसे पाद संख्या कहते हैं । ६-जिसमें गाथाओं की संख्या हो। -जिसमें गणना की संख्या हो । --जिसमें श्लोकों की संख्या हो । -जिसमें वेष्टकबन्द विशेषकी संख्या हो । १०-जिसी नियुक्ति की संख्या हो । ११-जिसमें अनुयोग द्वार की संख्या हो । १२-जिसमें दशकों की संख्या हो । १३-जिसमें अध्ययनों की संख्या हो । १४ जिसमें श्रुत स्कन्धों की गणना हो । १५-जिसमें अङ्गादिको की संख्या हो । इनका विशेष वर्णन नन्दी और अनुयोगद्वार से जानना चाहिये । १६-जिसमें प्रभृतों की संख्या हो। १७जिसमें प्राभूति की संख्या हो । १८-जिसमें प्राभूतप्राभृतिका की संख्या हो । १६-जिसमें जीवादि वस्तुओं की संख्या हो । ये सब पूर्वान्तर्गत श्रु ताधिकारविशेष हैं । यथा-"पाभूतादयः पूर्वान्तर्गतः श्रुताधिकार विशेषः।"
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