Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 293
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८८ [ उत्तरार्धम् ] ( से किं तं भावसामाइए ? ) भाव सामायिक किसे कहते हैं ? ( भावसामाइए ) जो आत्मिक सामायिक हो उसे भाव सामायिक कहते हैं, (दुविहे पण्णत्ते) दो प्रकार से प्रतिपान को गई है, तं जहा - ) जैसे कि -- ( श्रागमत्र श्र ) आगम से और (नोश्रागमश्री (1) नो मागम से । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (से किं तं श्रागमओ भावसामाइए ? ) श्रागम से भाव सामायिक किसे कहते हैं ? ( आगमी भावसामाइए ) भागम से भाव सामायिक उसे कहते हैं जो सामायिक का शब्दार्थ ( जाए उवउत्ते, ) उपयोग पूर्वक जानता हो, (सेतं आगमी भावसामाइए | ) यही आगम से भाव सामायिक है । ( से किं त नोआमश्र भावसामाइए १ ) नोआगम से भाव सामायिक किसे कहते हैं ? (नोश्रागमश्र भावसामाइए ) नो आगम से भाव सामायिक निम्न प्रकार जानना चाहिये । (जस) जिसकी (* सामाग्रिो थप्पा ) आत्मा सब प्रकार के व्यापार से निवृत्त होकर (संजमे) मूल गुरण रूप संयम में (पियम) उत्तर गुण रूप नियम में (a) अनशनादिक तप में हो, (तम्स) उसकी (+सामाइयं) सामायिक ( होइ ) होती है, (इ) इस प्रकार (केवतिभासियं ॥ १ ॥ ) केवलि भगवान् ने कहा है । ( जो समोसव्वभूएस) जिसका सब जोवों में सम-- मैत्री भाव है, (तसेसु थावरंसु 1) त्रस और स्थावरों में । ( तस्स) उसकी (सामाइयं) सामायिक (इ) होती है (इ केवलिभासियं ॥२॥) इस प्रकार केवलि भगवान् ने कहा है । (जह ) जैसे (मम) सुझको ( पिअं दुक्खं) दुःख प्रिय नहीं है (जाणि एमेत्र) इस प्रकार जान कर (सव्व जीवाण :) सब जीवों का, (न हाइ) न मारता है ( न हा वेड् य) न मरबाता है (सम इ) समान मात्रता है (ते) इस कारण से ( सो समणी ॥३॥ ) साधु है । श्रम * सामानिकः सन्निहित श्रात्मा सर्वकालं व्यापारात् । + जीवेषु च समत्वं संयमसात्रिध्यप्रतिपादनात् पूर्वश्लोकेऽपि लभ्यते, किन्तु जीवदयामूलवाइर्मस्य तत्प्राधान्यख्यापनाय पृथगुपादानमिति | चशब्दात धनताश्चन्यान समनुजानीत-च शब्द से हिंसा करते हुए को श्रच्छा न समझे । तदेवं सर्वजीवेषु समन सममणतीति 'समण' इत्येकः पर्यायो दर्शित, एवं समो मनोऽस्येति समना इत्यन्योऽपि पर्यायो भवत्येवेति दर्शयत्राह । अर्थात् समभावपन से जो सब जीवों को समान मानता है, वही 'श्रमण' है, यह भी एक व्युत्पत्ति उक्त शब्द की होती है, इसी प्रकार जिसका मन समान है, वही 'श्रमण' हैं, यह भी इस शब्द की एक व्युत्पत्ति होती है । For Private and Personal Use Only

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