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[ उत्तरार्धम]
२६१ भंवर, मृग, पृथिवी, कमल, सूर्य, और पवन इत्यादि उपमाओं के समान होता है वही श्रमण है ॥५॥
इस कारण वही श्रमण है जिसका शुभ मन है और जो भाव से भी पाप नहीं करता, तथा जिसका स्वजन और सामान्य मनुष्य, तथा मान और पपमान में सम भाव हो ॥६॥
इसी को नोश्रागम से भाव सामायिक कहते हैं। और यही सामायिक है। यही नामनिष्पन्न निक्षेप है। इसके बाद सूत्राल पकनिष्पन्न निक्षेप इस प्रकार जानना चहिये
सूत्रालायक निष्पन्न निक्षेक। से कि तं सुत्तालावगनिप्फरणे ? इआणि सुत्तालावयनिप्फएणं निक्खेवं इच्छावेइ से अ पत्तलक्खणेऽवि ण णिक्खप्पइ, कम्हा ? लाघवत्थं, अत्थि इओ तहए अणु
ओगदारे अणगमेत्ति,तत्थ णिक्खित्ते इह णिक्खित्ते भवइ, इहं वा णिक्खित्ते तत्थ णिक्खित्ते भवइ, तम्हा इहं ण णिविखप्पइ तहि चेव निक्खिप्पइ, से तं निकखेवे । (सू० १५४)
___ पदार्थ-(से किं तं सुगालावगनिष्फरणे ? ) सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षप किसको कहते हैं ? (सुत्तालावगनिष्करये) 'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि सूत्रालापकों के नाम स्थापनादि भेद भिन्न से जो न्यास है उसे सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप कहते हैं। (इपाणि) इस समय (सुत्तालावगनिष्करणं निक्खेव) सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेपकी (इच्छावेइ) इच्छा उत्पन्न होती है, (से 'अ पत्तलक्खणे ऽवि ) उसका लक्षण प्राप्त होने पर भी (ण णिक्खप्पड़,) निक्षेप * नहीं किया जाता है, (कम्हा ?) क्यों ? (लाघवत्थं) लाघवार्थ होने से ( अस्थि इश्रो तइए ) इसके आगे तृतीय ( अणु प्रोगदारे) अनुयोगद्वार (अणुगमेत्ति,) अनुगम है (तत्थ णिक्खित्ते) वहां निक्षेप करने से (इहं णिक्खित्ते भवइ,) यहाँ निक्षेप होता है, (इह वा णिक्खित्ते ) अथवा यहां पर निक्षेप करने से (वय शिक्खित्ते भवा,) वहाँ निक्षप होता है, (तम्हा) इस कारण ( इहं ण णिक्लिप्पइ ) यहां पर निक्षेप नहीं
सूत्रानापक निक्षेप के द्वारा वणन नहीं किया जाता।
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