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[श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] किया जाता (तहिं चेव निक्खिप्पइ,) वहां + पर ही किया जायगा, (से तं निक्खेवे) यही निक्षेप है। (सू० १५३)
___ भावार्थ-'करेमि भंते ! सामाइयं' इत्यादि सूत्रालापकों का नाम स्थापनादि भेदभिन्न जो न्यास है उसे सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप कहते हैं । इस समय यहां पर इस निक्षेप के कहने की इच्छा होती है, लेकिन लक्षण प्राप्त होजाने पर भी नहीं कहा जाता, क्योंकि लाघवार्थ होने से । इस लिये तृतीय अनुयोग नामक अनुयोगद्वार में वर्णन किया जायगा। वहां पर निक्षेप करने से यहां पर निक्षप होता है, अथवा यहां पर निक्षेप करने से वहां पर होता है । इस लिये यहां पर नहीं करते हुए वहां पर ही इसको निक्षेप किया जायगा। यहां पर निक्षेप नामक द्वितीय अनुयोगद्वार समाप्त होता है। इसके बाद अब तृतीय अनुयोगद्वार इस प्रकार जानना चाहिये
अनुगम। से कि त अणुगमे ? दुविहे पण्णत्ते, त जहा-सुत्ताणगम अनिज्जुत्तिअणुगमे ।
' से किं त निज्जुत्तिअणुगमे ? तिविहे पण्णत्ते, त' जहा-निक्वेवनिज्जुत्तिअणुगमे उवग्घायनिज्जुत्तिअणुगमे सुत्तप्फासिअनिज्जुत्तिअणगमे।
से कि त निक्खेवनिज्जुत्तिअणुगमे ? अणुगए, से त निक्खेवनिज्जुत्तिअणगमे ।
से कि त उवग्घायनिज्जुत्तिअणुगमे ? इमाहिं दोहिं मूलगाहाहि अणुगंतव्वो, त जहा
उद्देस निद्देसे अरनिग्गमे३ खेत्त४ काल५ पुरिसे य६ ।
+ सूत्र का उच्चारण किये बिना सूत्रालापक नहीं हो सकता, इस लिये यहां पर सूत्र का उच्चारण न होने से वर्णन नहीं किया गया । सिर्फ निक्षेप का सामान्य भेद होने से नाम मात्र ग्रहण किया गया है।
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