Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 295
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] भपमान में समान हो, ( से तं नोभागमो भावसा माइए, ) यही * नोपागम से भाव. सामायिक है, (से त भावसामाइए ।) यही भाव सामायिक है (से त सामाइए ।) यही सामायिक है । (से त नामनिप्फन्ने ।) यही नामनिष्पन्न निक्षेप है। भावार्थ-जिस वस्तु को नाम रूप निष्पन्न हुआ हो उसे नामनिष्पन्न निक्षेप कहते हैं, जैसे कि सामायिक । इसके चार भेद हैं- नाम स्थापना द्रव्य और भाव । नाम स्थापना और दव्य सामायिक पूर्ववत् जानना चाहिये । शशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक उसे कहते हैं जो पत्र अथवा पुस्तक रूप लिखी हुई हो। इसी को नोआगम से द्रव्य सामायिक अथवा द्रव्य सामायिक कहते हैं। भाव सामायिक के दो भेद हैं ,-आगम से और नोागम से । जो सामा. यिक शब्द के अर्थ को उपयोग पूर्वक जानता है उसे श्रागम से भाव सामायिक कहते हैं। नो आगम ले भाव सामायिक निम्न प्रकार जानना चाहिये । जैसे-- जिसकी आत्मा सब प्रकार के व्यापार से निवृत्त होकर मूलगुण रूप संयम, उत्तर गुण रूप नियम तथा अनशनादिक तप में लीन है, उसी की सामायिक होती है, ऐसा केवली भगवान् ने प्रतिपादन किया है ॥१॥ जो त्रस और स्थावर आदि सब प्राणियों को अपने समान मानता है उसी की सामायिक होती है, ऐसा केवली भगवान् ने कथन किया है ॥२॥ से कि मुझे किसी जीव की हिंसा करने को, करवाने को अशवा करते हए को अनुमोदन करने का दुःख प्रिय नहीं है, इस प्रकार सर्व जीवों को जान कर समान मानता है, इस कारण वह श्रमण है ॥ ३॥ किसी जीव के साथ द्वेष नहीं है बल्कि सभी के साथ प्रीति है, इससे भी वह श्रमण है । यहां दूसरा पर्याय रूप है ॥ ४॥ तथा जो सर्प, पहाड़, अग्नि, सागर, आकाश का तलिया, वृक्षों के समूह, ___ * "इह च ज्ञानक्रियारूप सामायिकाध्ययनं नोग्रागमतो भावसामायिकं भवत्येव, ज्ञानक्रियासमुदाये श्रागमस्यैकदेशत्तित्वात, नोशब्दस्य च देशवचनत्वाद्, एवं च सति सामायिकवतः साधो. रपीह नोागमतो भावसामायिकत्वेनोपन्यासो न विरुध्यते, सामायिकतद्वतोरभेदोपचारादिति भावः' अर्थात् यहां पर ज्ञान क्रिया रूप सामायिक अध्ययनको नोभागमसे भावसामायिक जानना चाहिये । क्योंकि ज्ञान और क्रियाएँ छागम की एक देश होने से भावसामायिक होती हैं। तथानोशब्द देशवाचक है। इसी प्रकार सामायिक करने वाला और साधु दोनों ही को नोपागम से भाव सामायिक कहने में कोई विरोधापत्ति नहीं है क्योंकि दोनों ही उक्त सामायिक में हैं। For Private and Personal Use Only

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