Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 292
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८७ __ [ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासिय ॥२॥ जह मम ण पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । ण हणइ न हणावेइ अ, सममणति तेण सो समणो णत्थिय से कोइ वेसो, पिरो य सव्वेसु चेव जीवेसु । एएण होइ समणो. एसो अन्नोऽवि पन्जाओ ॥४॥ उरगगिरिजलणसागरनहतलतरुगणसमोअजो होइ। भमरमियधरणिजलरुहरविपवणसमो असो समणो ५ तोसमणोजइ सुमणो, भावेण य जइण होइ पावमणो सयणे अ जणे य समो, समोअ माणावमाणेसु॥६॥ से तं नोआगमओ भावसामाइए, से तं भावसामाइए, से त सामाइए, से तं नामनिप्फण्गो । पदार्थ (से किं तं नामनिप्फरणे ?) नामनिष्पन्न निक्षेप किसे कहते हैं ? (नामनिप्फरणे) पूर्व कथित जो अक्षीणाद्यध्ययन के नाम से विशेषतया निष्पन्न हुए हो उस को नामनिष्पन्न निक्षेप कहते हैं, जैसे कि ( सामाइए,) सामायिक, (से) वह ( समासो) संक्षेप से ( चरब्बिहे पएणत्ते,) चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा.) जैसे कि-(णा सामाइए) नाम सामायिक (ठवणासामाइए) स्थापना सामायिक (दव्वसामाइए) द्रव्य सामायिक और (भावसामाइए ।) भावसामायिक । (णामठवणात्रो) नाम और स्थापना (पुव्वं भणियाश्री।) पूर्व वर्णन की गई है। (दव्वसामाइएवि) द्रव्य सामायिक भी (तहेव ।) उसी प्रकार जानना चाहिये । (जाव) यावत (से त भविश्रसरीरदव्वसामाइए ।) यही भव्य शरीर द्रव्य सामायिक है। (से किं तं जाणगसरीर भविय० ?) ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामाथिक किसे कहते हैं ? (जाणय०) ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक उसे कहते हैं (पत्तयपोत्थयलिहियं,) जो पत्र अथवा पुस्तक रूप लिखा हुआ हो, (से तं जाणयसरीर०) यहो ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक है, (सेतं आगमश्री दन०) यही नोआगम से द्रव्य सामायिक है, (से तं दव्वसामाइए । ) और यही द्रव्य सामायिक है। For Private and Personal Use Only

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