Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 290
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] २८५ शशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य क्षपणा ( जहा जाण्यसरीरभ वे सरीरवइरते दव्वाए) जैसे ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आय होती है । तहा भागिवा) उसी प्रकार कहना चाहिये, (जाव) यावत् (ते तं मीसिया ) यही मिश्र क्षपणा है । ( से तं लोगुतरिश्रा ) यही लोकोत्तरिक है, ( से तं जाणयसरीरभविश्र सरीश्वइरित्ता दव्वज्भवणा, ) यही ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य क्षपणा है, ( से तं नोश्रागमश्री दव्वज्भवणा,) यही नोभागम से द्रव्य क्षपणा है, और (से तं दव्वज्भवणा ) यही द्रव्य क्षपणा है । ( से किं तं भावज्झत्रणा ? ) भाव क्षपणा किसे कहने हैं ? ( भावज्भवणा ) भाव क्षपणा ( दुविहा पत्ता, ) दो प्रकार से प्रतिपादन को गई है, (तं जहा-) जैसे कि ( आगमओ) श्रगम से और ( श्रागमश्री य ।) नोआगम से । से किं तं श्रागमश्र भावज्झत्रणा ? ) आगम से भाव क्षपणा किसे कहते हैं ? ( श्रामश्री भावज्झत्रणा) आगम से भाव क्षपणा उसे कहते हैं कि ( जाणए उत्र, ) जो क्षपणा शब्द के अर्थ को उपयोग पूर्वक जानता हो, ( से तं श्रागमश्री भावकाणा । ) यही आगम से भाव क्षपणा है । ( से किं तं गोश्रागमश्र भावकवणा ? ) नोआगम से भाव क्षपणा किसे कहते हैं ? ( श्रागमश्री भावकवणा ) नोश्रागम से भाव क्षपणा ( दुविहा गणत्ता) दो प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि - (पसत्था य) प्रशस्त और ( श्रपत्थाय ) अप्रशस्त । ( से किं तं सत्या ? ) प्रशस्त किसे कहते हैं ? ( स ) प्रशस्त क्षपणा (तिविहा पचा) तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि -- (नाणज्भाणा ) ज्ञान क्षपणा दिसणा) दर्शन क्षपणा (चरितज्भवणा) चारित्र क्षपणा, (सेतं पसFथा ।) यहो प्रशस्त क्षपणा है । (किं तं था ?) प्रशस्त किसे कहते हैं ? ( अपसत्था) अप्रशस्त ( चउत्रिहा पचा) चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि - (कोहज्झत्र गा क्रोध क्षपणा ( माज्झत्रणा ) मान क्षपणा ( मायज्झत्रणा ) माया क्षरणा (लोहकणा) लभ क्षपणा (सेतं असत्या, ) यही अप्रशस्त क्षपणा है । ( से तं नोग्राम श्री भावका ) और यही आगम से भाव क्षपणा है, (से तं भावज्भवणा ) यही भाव क्षपणा है, (तं हनिफ ।) और यही प्रोघनिष्पन्न है । भावार्थ - क्षपणा उसे कहते हैं जिससे कर्म की निर्जरा हो। इसके चार भेद हैं, नामक्षरणा, स्थापनाक्षपणा, द्रव्यक्षपणा और भावक्षपणा । नाम ओोर स्थापना पूर्ववत् जानना चाहिये । तथा शशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य For Private and Personal Use Only

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