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[ उत्तरार्धम् ]
२८३
से किं तं जाणयसरीरभविय सरीरवइरित्ता दव्वज्झवरणा ? जहाँ जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए तहा भागिव्वा जाव, से तं मीसिया, से तं लोगुत्तरिया, सेतं जाण्यसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वज्भवणा, से तं नोआम दव्वज्वरणा, से तं दव्वज्भवणा |
से किं तं भावज्भवणा ? दुविहा पण्णत्ता, तं जहाआगमओ अ गोयागमओ अ ।
से किं तं आगमओ अ भावज्झवरणा ? दुविहा प गणत्ता, तं जहा - जाणए उवउत्ते से तं श्रागमत्रो भाव
"
ज्वणा ।
से किं तं नोआगमश्र भावज्झवणा ? पसत्था य अपसत्था य ।
से किं तं सत्था ? तिविहा पण्णत्ता, तं जहानाणज्भवणा दंसणज्भवणा चरितवणा से त
पसत्था ।
से किं त अपसत्था ? चउव्विहा पण्णत्ता, त जहा कोहवणा माणवरणा मायज्भवणा लोहज्भवणा, सेत असत्था से तं नोआगमत्रो भावज्भवणा, से त भावभवणा, सेत झवणा से त ओहनिष्कगणे |
पदार्थ - (से किं तं झत्रणा ?) क्षपणा किसे कहते हैं ? और वह कितने प्रकार से प्रतिपादन की गई है । ( झवणा ) क्षपणा उसे कहते हैं जिससे कर्म की निर्जरा हो, और वह (चव्हा पणत्ता) चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा - ) जैसे कि - (नामज्भवणा) नामक्षपणा (ठवणज्झत्रणा) स्थापना क्षपणा (दव्वज्भवणा) द्रव्य क्षपणा और ( भावज्झत्रणा । ) भाव क्षपणा । ( नामठवणा पुव्वं भणिश्राश्र । ) नाम और स्थापना का स्वरूप पूर्व में वर्णन किया जा चुका है।
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