Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain
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[ श्रीमदनुयोगद्वारसुत्रम् । ठवणाए दवाए भावाए । नामठवणाश्रो पुव्वं भणिभाओ।
से किं तं दवाए ? दुवहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमओ अ नोआगमओ अ।
से किं त आगमओ दवाए ? जस्स णं आयत्ति पदं सिक्खित ठित जित मित परिजित जाव कम्हा ? अणुवओगो दव्वमितिकट्ट, नेगमस्स णं जावइया अणवउत्ता आगमओ तावइया ते दवाया जाव, सेतं आगमओ दव्वाए।
से कि त नोआगमओ दवाए ? तिविहे पण्णत्ते. तौं जहां-जाणगसरीरदव्वाए भवियसरीरदव्वाए जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए।
से किंत जाणगसरीरदठवाए ? आयपयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं जहा दव्वज्झयगो जाव, सें तं जाणगसरीरदव्वाए।
से कि त भविसरीरदव्याए ? जे जीवे जोणिजम्मणणिक्खंते जहा दव्वज्झयणे जाव, से सं भवियसरोरदवाए।
से कि त जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्वाए ? तिविहे पण्णत्ते, त जहा-लोइए कुप्पावयणीए लोगुत्तरिए ।
से कि तं लोइए ? तिविहे पण्णत्ते, तं नहा-.चि. चे अचित्ते मीसए अ।
से कि त सचित्ते ? तिविहे पण्णत्ते, त जहा-दुपयाणं चउप्पयाणं अपयाणं दुपयाणं दासाणं दासीणं चउ
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