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[उत्तरार्धम् ।
२७९ न्यशरीर द्रव्य आय (जाणयसरीरवइरिने दवाए ।) और ज्ञशरीर भन्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य प्राय। .
(से किं तं जाणगसरीरदबाए ?, ज्ञशरीर द्रव्याय किसे कहते हैं ? (जाणग०) - ' शरीर द्रव्य आय उसे कहते हैं कि-(प्रायपयत्थाहिगारजाणयस्स) आयपदार्थाधिकार के
जानने वाले का (जं सरीरयं) जो शरीर है, जो कि (ववगय) चैतन्यसे रहित हो अथवा (चुअ) च्युत हुआ हो (चाविय) दश प्रकार के प्राणों से रहित हुआ हो या (चत्तदेह) देह छोड़ दिया हो (जहा) जैसे (दव्यज्झयणे,) द्रव्य अध्ययन, (से : जाणगसरीरदबाए ।) यही शरीर द्रव्य आय है।
(से कि तं भवियसरीरदव्वाए १ ) भव्यशरीर द्रव्य आय किसे कहते हैं (भवियसरीरदबाए) भव्यशरीर द्रव्य आय उसे कहते हैं कि-(जे जीवे) जो जीव (जोणिजम्मणनिक्खंते) योनि से निकल कर जन्म को प्राप्त हुआ हो ( जहा दबज्झयणे,) द्रव्य अध्ययन के समान, (से तं भवियसरीरदवाए ।) यही भव्यशरोर द्रव्य आय है।
(से किं तं जाणग० वइरित्ते दवाए ?) ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य माय किसे कहते हैं ? ( जाणग० वइरित्ते दबाए ) ज्ञशरीर भव्यशरीर ब्यतिरिक्त द्रव्य प्राय (तिविहे पएणत्ते,) तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (तं जहा.) जैसे कि-- (लोइए, लौकिक (कुप्पावयपिए) कुप्रावचनिक और (लोगुचरिए ।) लोकोतरिक ।
(से किं तं लोइए ?) लौकिक किसे कहते हैं ? (लोइए) जो सांसारिक लाभ हो उसे लोकिक कहते हैं, और वह (तिविहे पण्णत्ते,) तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि-( सचिचे) सचित्त (अचिने ) अचित्त ( मीसा अ।) और मिश्र ।
___ (से किं तं सचित्ते १) सचित्त किसे कहते हैं ? (सचिते) जो सचित्त पदार्थ का लाभ हो उसे सचित्त कहते हैं, और वह (तिविहे पण्णत्ते,) तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा) जैसे कि-(दुपयाणं ) दो पांव वालों का (चउप्पयाणं) चार पैर वालों का (अपयाणं) और बिना पैर वालों का । (दुपयाणं) दो पैर वालों का जैसे-(दासाणं) दास-सेवकों और (दासीणं) दासियों-सेवकनियों का (चप्पयाणं, चतु. पदों का, जैसे-(आसाणं) अश्व-घोड़ों और (हत्थीणं) हस्तियों का (अपयाणं) बिना पैर वालों का, जैसे-(अंबाणं) आम और (अंबाडगाणं) अम्बाडियों का (आए,) लाभ, (से तं सचित्ते ।) इसी को सचित्त आय कहते हैं !
(से किं तं चिचे १) अचिर पाय किसे कहते हैं ? (अचिरी) जिस अचित्त वस्तु +शेष अधिकार द्रव्य अध्ययन के अनुसार जानना चाहिये।
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