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[ उत्तराधेम]
२५९ (जीवे) जम्बूद्वीप में (समीयरइ श्रायभाव अ) और आत्मभाव में समवतीर्ण होता है, (जंबृद्दीवे) जम्बूद्वीप ( अग्यासमोआरेणं ) श्रात्मसमवतार से (प्रायभावे) अात्मभाव में (समोयाइ,) समवतीर्ण होता है, और (तदुभयसमोसारेण) तदुभयसमवतार से तिरियलाए) तिर्यक् लोक ( समोयरइ अायभावे अ, ) और श्रात्मभाव में समवतीर्ण होता है, (तिरिअलोए) तिर्यक लोक में (आयसभोवारेण) आत्मसमवतार से (प्रायभावे) आत्मभाव में (सनोयाइ) समवतीर्ण होता है, और (तदुभयसमोआरेणं तदुभयसमवतार से (लोए) लोक में (सनोग्ररइ श्रायभावे अ,) और आत्मभाव में भी समवतार्ण होता है, (से तं खेत्तसमोपारे ।) यहो क्षेत्रसमवतार है।
भावार्थ- क्षेत्र समवतार उसे कहते हैं जो लघु क्षेत्र का प्रमाण बृहत्क्षेत्र समवतीर्ण किया जाय । इसके दो भेद हैं-श्रोत्मसमवतार और तदुभयसमा वतार । आत्मसमवतार उसे कहते हैं जो अपने ही स्वरूप में हो, जैसे किभारतवर्ष आत्मसमवतार से प्रात्मभाव में अर्थात् अपने ही क्षेत्र में समवतीर्ण होता है। - तथा तदुभयसमवतार उसे कहते हैं जो आत्म स्वरूप और पर स्वरूप दोनों में हो, जैसे कि--भारतवर्ष, तदुभयसमवतार से जम्बूद्वीप में समवतीर्ण होता है और श्रात्मभाव में भी इसी प्रकार अलोक पर्यन्त जानना चाहिये । यही क्षेत्र समवतार है। इसके बाद अब कालसमवतार का वर्णन किया जाता है
कालसमकतार । से किं तं कालसमोआरे ? दुविहे पण्णत्ते तं जहाआयसमोआरे अ तदुभयसमोआरे अ, समए आयसमोआरेणं आयभावे समोअरइ, तदुभयसमोआरेणं आव. लि पाए समोयरइ आयभावे अ, एवमाणापाणू थोवे लवे मुहत्त अहोरत्त पनवे मासे ऊऊ अयणे संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्सं पुव्वंगे पुवं तुडिअंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अबवे हहअंगे हहए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे णलिणंगे णलिणे अच्छनि
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