________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५८
[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ]
जैसे घट में ग्रीवा। यदि ऐसी शंका की जाय कि परसमवतरण तो होती ही नहीं, तो उसका सूत्रकार उत्तर देते हैं कि वास्तव में समवतार दो दो होते हैं, जैसे कि-- श्रात्मसमवतार और तदुभयसमवतार । तृतीय पररूप समवतार केवल नाम मात्र ही वर्णन किया गया है।
इसी प्रकार द्रव्य की अपेक्षा जैसे चतुःषष्टिका चार पल प्रमाण श्रात्म• समवतार में भी रहती है और तदुभय समवतार की अपेक्षा द्वात्रिंशिका आठ पल प्रमाण में भी होती है, इसी प्रकार मानी पर्यन्त जानना चाहिये । यही ज्ञ शरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार नो श्रागम से द्रव्यसमवतार है ।
st
समवतार है ।
इसके बाद क्षेत्रसमवतार का वर्णन किया जाता है
क्षेत्र समक्तार।
से किं तं खेत्तसमोआरे ? दुविहे पण्णत्ते, सं जहांप्राय समोरे अ तदुभयसमोरे छ, भरहे वासे प्रायसमोआरणं श्रयभावे समोअरइ, तदुभयसमो श्रारेणं जंबूद्दीवे समोयरइ आयभावे अ, जंबूद्दीवे प्रायसमो - अरे आयभावे समोअर इ, तदुभयसमो रे तिरियलोए समारइयभावे अ, तिरियलोए आयसमो मारेणं आयभावे समोअरइ, तदुभयसमोआरेणं लोए समोअरइ, श्रयभावे, सेतं खेत्तसमोयारे ।
-
पदार्थ - (से कि तं खेससमोरे ?) क्षेत्रसमवतार किसे कहते हैं ? (खेत्तसमी नारे) क्ष ेत्र समवतार (दुबिहे पण्णत्ते) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है. (तं जहा-) जैसे कि -- (आयसीआरे अ) आत्मसमवतार और (तदुभयसमाचार अ) तदुभयसम
तार (भरहे वासे) भारतत्र' (आयसमोरे) आत्मसमवतार से आयभावे) आत्मभाव में (समोर, ) समवतीर्ण होता है, और ( तदुभयसमोरे ) तदुभयसमवतार से
For Private and Personal Use Only
* इत्तः 'लोए श्रायसमोचारेण श्रायभावे समोयाड, नदुभयसमो श्रारेणं अलोए समोurs Heera ' इत्यधिक afer ।