Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 278
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम्] २७३ से किं तं नोआगमओ भावज्झोणे ? जह दीवा दीवसयं, पइप्पए दिप्पए अ सो दीवो । दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवंति ॥१॥ से तं नोआगमओ भावझोणे । से तं भावज्झोणे, से तं अज्झोणे। पदार्थ--( से किं तं अज्झोणे १ ) अक्षीण किसे कहते हैं ? और वह कितने प्रकार का है ? (अज्झोणे) अक्षीण उसे कहते हैं सामान्यश्रुत विशेष सामायिक चतुविंशतिस्तवादि का नाम हो, और वह चउबिहे पण्णते, ) चार प्रकार से प्रति गदन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि-(णामीणे) नाम अक्षोण, (वणज्झीणे) स्थापना अक्षीण, (दव्वज्झीण) द्रव्य अक्षोण और (भावमाण।) भाव अक्षाण । (नामठवणाग्रो) नाम स्थापना (पुव्वं वरिणामाग्री,) पूर्व में वर्णन को गई है। (मे किं तं दबझोणे ?, द्रव्य अक्षोण किसे कहते हैं ? (व्यझोणे) जो द्रव्य से क्षीण न हो, वह (दुविहे पएणते, ) दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि-(भागमो अ) आगम से, और (नायागमयो अ) नो आगम से। ( के किं तं श्रागमत्रो दव्यज्झीणे ?) आगम से द्रव्य अक्षीण किसे कहते हैं ? ( श्रागमो दव्वज्झीणे ) आगम से द्रव्य अक्षाण उसे कहते हैं कि- जस्सए।) जिसन (अज्झीणेत्तिपयं) अक्षोण रूप एक पद को (साक्खयं) प्रारम्भ से अन्त तक साख लिया हा, (जियं, आवृत्ति करत हुए काई पूछ तो शान उत्तर दता हो उसे जित कहते हैं, (मियं) पदादि श्लाकों के वर्गों को संख्या जानता हा । ( पाराजतं जाव) आवृत्ति करत हुए कोई उलट पुलट पूछे तो सब प्रकार उत्तर दता हा, यावत (स तं पागमा दबज्झीणे ।) यही आगम से द्रव्य अक्षीण है। (से किं तं नायागमा दव्वझीणे ? ) ना मागम से द्रव्याक्षीण किस कहते हैं ? (नोग्रागमो दवझीण) नोआगम स द्रव्याक्षीण ((तावह पएणच ) तान प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तं जहा-) जैसे कि--(जाणयसरीरदव्यमाण,) ज्ञशरीर द्रव्याक्षीण ( भवियसरीरदव्वझीणे ) भव्यशरोर द्रव्याक्षाण और ( जाण्यसरीरभवियसरीरवहारतं दवज्झीणे ।) ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षाण । (से कि तं जाणयसरीरदव्वझाणे ?) शरीर द्रव्याक्षीण किसे कहते हैं ? (जाणयसरीरदश्वज्झीणे) ज्ञशरीर द्रव्याक्षीण उसे कहते हैं जो (अज्झीणपयत्थाहिगरजाणयस्स) भतीण शब्द पदार्थाधिकार के ज्ञाता का (सरीर) जो शरीर (वायचुचावयः For Private and Personal Use Only

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