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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ]
अर्थाधिकार विषय से किं तं अत्याहिगारे ? जो जस्स अज्झयणस्स अत्थाहिगारो, तं जहा---
सावज्जजोगविरई, उकित्तण गुणवो य पडिवत्ती । खलियस्त निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव॥॥ से तं प्रत्याहिगारे । (सू० १५२) ।
पदार्थ-( से किं तं ग्रस्थाहिगारे ? ) अर्थाधिकार किसे कहते हैं ? (प्रत्याहिगार) अर्थाधिकार उसे कहते हैं कि-(नो जस्स अज्झ रणस्स) जो जिस अध्ययन को (अत्याहि गारो,) अर्थाधिकार हो, (तं जहा-) जैसे कि-(सावज जोगविरई) सावध योग की निवृत्ति रूप प्रथमाध्याय है ( उकितण) चतुर्विशित स्तवरूप द्वितीयाध्याय है (गुणवो य पडिवी) गुणघान की प्रतिपत्ति रूप तृतीय वन्दनाध्याय है, (खलियस्त निंदणा) पापोंकी आलोचना रूप प्रतिक्रमण चतुर्थ अध्याय है, और (वणतिगिच्छ ) व्रणचिकित्सा रूप-कायोत्सर्स नाम का पांचवां अध्याय है, (गुग्णधारणा चेत्र ॥१॥) गुणधारणा रूप प्रत्याख्यान नामक छठा अध्याय है ॥ १॥ ( से तं अथाहिगारे। ) वही * अर्था धिकार है । (स. १५२)
भावार्थ-अर्थाधिकार उसे कहते हैं जो जिस अध्ययन के अर्थ का अधि कार हो, जैसे कि-श्रावश्यक स्त्र के ६ अध्याय हैं, वे उसी के अधिकार रूप होते हैं । इसी प्रकार अन्य सूत्रों के विषय में भावार्थ जानना चाहिये। ___अर्थाधिकार और वक्तव्यता में सिर्फ इतना ही भेद है कि-अर्थाधिकार अध्ययन के आदि पद से प्रारम्भ होकर सब पदों में अनुवर्तता है, जैसे किपुद्गलास्तिकाय का प्रत्येक परमाणु मूर्तमान् है, और वक्तव्यता यह है, कि जैसे उसी के देशादि का निरूपण करना । (सू० १५२)
इसके बाद समवतार का स्वरूप जानना चाहिये-- * विशेष अधिकार प्रथम भाग स्० ५८ से जानना चाहिये ।
समक्तार विषय से कि त समोआरे ? छव्विहे पण्णते, तं जहा-णामसमोआरे ठवणासमोआरे दव्वसमोआरे खेत्तसमोआरे
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