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[ उत्तरार्धम् ]
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को परस्पर वार्त्तालाप करना असंगत है तथापि भव्यजनों के बोध के लिये इस प्रकार कहा जाता है । यह श्रविद्यमान पदार्थ से विद्यमान पदार्थ को उपभा देना तीसरा भंग है ३, चतुर्थ भंग वह है कि जो श्रविद्यमान को अविद्यमान से उपमान दिया जाय, जैसे गधेके रंग हैं उसी प्रकार शशके विषाण हैं। क्यों कि दोनों अभाव रूप हैं ४ । यही उपमा संख्या है-
अब इसके अनन्तर परिमाण संख्या का वर्णन किया जाता है 1 परिमाण संख्या +
से किं तं परिमाणसंखा ? दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा कालियसुयपरिमाणसंखा दिट्ठवायसुयपरिमाण संखा य । से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा ? अगविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पयसंखा पायसंखा गाहासंखा संखायसंखा सिलोगसखा वेदसंखा निज्जत्तिसंखा, अणुओगदारसंखा उसगांखा अज्झ यसंखासुखंधसंखा अंगसंखा, से तं कालिय सुयपरिमाणसंखा ।
से किं तं दिट्टिवायसुयपरिमाणसंखा ? अगविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जवसंखा जाव अण ओोगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुडियासंखा पाहुहपाहुडियासंखा वत्थुसंखा, सेतं दिट्टिवायसुयपरिमाणर्सखा । से तं परिमाणसंखा ।
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पदार्थ --- ( से किं तं परिमाणसंखा ? ) परिमाण ं संख्या किसे कहते हैं और वह कितने प्रकार से वर्णन की गई है ? (परिमाणसंखा ) जिसके + द्वारा पर्याय आदिकों की संख्या की जाय उसे परिमाण संख्या कहते हैं, वह दुविहा) दो प्रकार से (पणता ) प्रतिपादन की गई है, (तं जहा-) जैसे कि - (काल्यिसुयपरिमाणसंखा ) कालिक श्र तपरिमाग संख्या, (दिद्विवायसुपरिमाणसंखा य ।) और दृष्टिवादत्र तपरिमाण संख्याँ ।
(से किं तं कालिय परिमाणसंखा ?) कालिकन तपपिमाण संख्या किसे कहते हैं ? ( कालियसुयपरिमाणसंखा ) जिन २ सूत्रों को प्रथम या दूसरे प्रहर में वाचना दी जाय
* एतदम्यत्र नोपलभ्यते ।
+ संख्यायते श्रनयेति संख्या - परिमाणं पर्यवादि तद्पा संख्या परिमाणसंख्या ।
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