Book Title: Anuyogdwar Sutram Uttararddh
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Murarilalji Charndasji Jain

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Page 244
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ उत्तरार्धम् ] २३९ समा गया, ( एवं पक्खिप्पमाणेहिं २ ) इस प्रकार प्रक्षेप करते २ (होही सेऽवि अमलए) वही ऑवला होगा (जसि पक्खित्ते) जिसके डालने से (से मंचए) वह मञ्च (भरिजिहित) भर जायगा ( जे नत्थ ) जिसके बाद (आमलए) ऑवला (न माहिइ,) न समा सकेगा। (एवामेव) इसी प्रकार (उकोसए सखेज्जए) उत्कृष्ट संख्येयक हो (रूवं पक्खिरो) रूप प्रक्षेप करने से (जहएणयं) जघन्य (परित्तासंखेज्जयं) परीतासंख्येयक (भवइ ।) होता है । भावार्थ--जिसके द्वारा गणना की जाय उसे गणना संख्या कहते हैं । एक का अंक तो संख्या की गिनती में नहीं आता, इस लिये दो से गिनती शुरू होती है । इसके तीन भेद हैं-संख्येयक १, असंख्येयक २, और अनन्तक ३। १, संख्येयक-जघन्य २, मध्यम २, और उत्कृष्ट ३। २, असंख्येयक-जघन्य परीत असंख्येयक ?, मध्यम परीत असंख्येयक२, और उत्कृष्ट परीत असंख्येयक ३; जघन्य युक्त अख्येयक ४, मध्यम युक्त असं. ख्येयक ५, और उत्कृष्ट युक्त असंख्येयक ६; जघन्य असंख्ययक असंख्येयक ७, मध्यम असंख्येयक असंख्येयक , और उत्कृष्ट असंख्येयक संख्येयक ।। ३, अनन्त - जघन्य परीतानन्त १, मध्यम परीतानन्त २, और उत्कृष्ट परीतानन्त ३; जघन्य युक्तानन्त ४, मध्यम युक्तानन्त ५, और उत्कृष्ट युक्तानन्त ६; जघन्य अनन्तानन्त ७, और मध्यम अनन्तानन्त :, इस प्रकार संक्षेप से कुल बीस अंक वर्णन किये गये हैं । अब इन्हीं का विस्तार पूर्वक विवेचन करते हैं। जैसे. . असत्कल्पना के द्वारा चार पल्य जम्बूद्वीप प्रमाण कल्पित __ कर लिये जाये और उनकी परिधि ३ लाख, १६ हजार, २२७ योजन, . . कोश, १२८ धनुष, १३॥ अंगुल से कुछ विशेष होती है। इनके नाम अनुक्रम से शलाका १, प्रतिशलाका २, महाशलाका ३ और अनवस्थित है। ये एक सहस्र योजन प्रमाण गहरे और जम्बूद्वीप की वेदिका के समान ऊंचे हैं। उनमें से अनवस्थित पल्य को सर्षपों से भर दिया जाय फिर उसको असत्कल्पना के द्वारा कोई देवता उठाकर एक २ सर्षप एक २ दीप और एक २ समुद्र में प्रक्षेप करता जाय । जिस समय उन सब सर्षपों का अवसान आजाए तब एक सर्षप प्रथम शलाका पल्य में प्रक्षेप कर दिया जाय । तथा--जहां तक वे सब सर्षप प्रक्षेप किये थे इतने ही क्षेत्र का एक और अनवस्थित पल्य कल्पित कर लिया जाय । फिर वे सर्षप पूर्ववत् अन्य द्वीप समुद्रों में प्रक्षेप कर दिये जायें। जब एक सर्षप शेष रह जाय तब उसी शलाका पल्य में प्रक्षेप किया जाय । इसी प्रकार पूर्णतया शलाका पल्य को अनवस्थित पल्य के द्वारा भर दिया जाय तर. For Private and Personal Use Only

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