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[उत्तरार्धम]
२२५ आठ प्रकार की कही गई है । ( तं जहा. ) जैसे कि-(नामसखा ) नाम संख्या १, ठवणसंखा) स्थापना संख्या २, (दव्वसंखा ) द्रव्य संख्या ३, (श्रोवम्मसखा ) औपम्यउपमान संख्या ४. (परिमाण संखा ) परिमाण संख्या ५, (जाणणासंखा) ज्ञान संख्या ६, (गणणासंखा) गणना संख्या ७, और (भावसंखा) भाव संख्या ।
.. (से कि तं नामसंखा ?) नामसंख्या किसे कहते है ? (नामसंखा) नाम संख्या उसे कहते हैं कि, ( जस्स | जीवरस वा जाव ) जिस किसीका अथवा जीव का (से तं नामसंखा ।) यही नाम संख्या है।
(से किं तं ठवणसंखा ? ) स्थापना संख्या किसे कहते हैं ? (ठवणसंखा) स्थापना संख्या उसे कहते हैं कि (जएगा कट कर मे वा) जो काष्ठ का कर्म हो अथवा (पोत्थकम्मे वा) पुस्तक का कम हो (जाव) यावत् (२.२ टवणसंखा ।) यही स्थापना संख्या है।
( नामटवणाग ) नाम और स्थापना में ( को पइविसंसो ? ) कौन प्रतिविशेष है ? ( नाम [पाएणं]) प्राय: नाम हो है, क्योंकि यह ( श्रावकहिय) आयुपर्यन्त होता है, और (ठवणा) स्थापना (इत्तरिया वा होजा) स्वल्प काल भी होता है और प्रावकहिया वा होना। आयुपर्यन्त भी होता है।
( से किं तं दव्वसंखा ? ) द्रव्य संख्या किसे कहते हैं ? ( दवसंखा ) द्रव्य संख्या (दुविहा पएणत्ता, दो प्रकार से प्रतिपादन की गई है (त जहा.) जैसे कि-(भागमो य) प्रागम से और (मोआगमी य) नो आगम से (जाव) यावत् । ।
(से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा ?) ज्ञशरीर, भव्य शरीर और व्यतिरिक्त द्रव्य संख्या किसे कहते हैं ? (जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा) ज्ञशरीर, भव्य शरीर और व्यतिरिक्त द्रव्य संख्या (तिविहा परणत,) तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, ( तं जहा-) जैसे कि-(एगभविए) जिस जीव को मत्यु के पश्चात् विना अन्तर शंख में उत्पन्न होना है उसे एकभविक शंख कहते हैं, (बढाउए) जिसने शंख भव की आयु उपार्जन करली है उसे बद्धायुष्क कहते हैं, (अभिमुहनामगोत्ते श्र।) और अभिमुख हो गया है नाम और गोत्र जिसका उसे अभिमुखनामगोत्र कहते हैं।
(एगभविए णं भंते !) हे भगवन् ! अब एक भवका वर्णन कीजिए (एगभविएत्ति) एक भव (कालो केवच्चिर होइ ? ) काल से कितने समय का होता है ? (जहणणेणं भंतोमुहुत्त) जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और ( उक्कोसेणं पुव्वकोडी,) उत्कृष्ट से पूर्व क्रोड वर्ष प्रमाण।
(बढाउए णं भंते !) हे भगवन् ! अब बद्धायुष्क जीव का वर्णन कीजिए (पहा•इसका विशेष वर्शन प्रथम भाग सूत्र ११ से जानना चाहिये ।
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