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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ] तएण उवमिज्जइ, प्रत्थि असंतयं संतएां उवमिज्जइ, अस्थि असंतयं असंतपणं उवमिज्जइ तत्थ संतयं संतएां उवमिज्जइ जहा - संता अरिहंता संतएहिं पुरवरेहिं संतएहि कवाडेहिं संतएहिं बच्छेहिं उवमिज्जइ, तं जहा
पुरवरकवाडवच्छा, फलिहा दुदुहित्थणियघोसा । सिरिवच्छंकि प्रवच्छा, सव्वे वि जिणा चउव्वीसं ॥१॥ संतयं असंत उवभिज्जइ जहा - संताई नेरइयतिारक्खजोणिय मरणस्तदेवाणं श्राउयाइ असंतएहि पलिओ - 'वमसागरोवमेहि उवमिति २ । असंतयं संतएणं उवमिज्जइ तं जहा -
परिजूरियपेरंतं, चलंतबिंटं पडंतनिच्छीरं । पत्तं व वसणपत्तं, कोलप्पत्तं भरणइ गाहं ॥ १ ॥ जहतुब्भे तह अम्हे, तुम्हेऽवि होहिहा जहा अम्हे । अप्पा पडतं, पंडुयपत्तं किसलयां ॥ २ ॥
विथि विहोही, उल्लावो किसलपंड़पत्ताणं । उवमा खलु एस कया, भवियजणविबोहराट्टाए ॥ ३ ॥ संतयं असंतएहिं उवमेिजइ, जहा - खरविसाणे तहा ससविसाणे + | से तं वम्मसंखा |
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पदार्थ - ( से किं तं श्रोत्रम्मसंखा ? ) औपम्य - उपमान संख्या किसे कहते हैं ? ( श्रोत्रम्मसंखा ) किसी वस्तु का उपमा के द्वारा प्रमाण जानना उसे भौपम्य संख्या कहते हैं, और वह ( चउविहा पण्णत्ता, ) चार प्रकार से प्रतिपादन की गई है, (₹ जहा - ) जैसे कि -- ( श्रत्थि संतयं) विद्यमान पदार्थ को ( संतए ) विद्यमान पदार्थ से (उवमिज्जइ) उपमा दो जाती है १ । (अस्थि संतयं) विद्यमान पदार्थ को (असंतपणं) -
* क्वचित 'वंदा जिणे चउव्वीसं' ।
+ कचित्र 'जहा खरविसाणं तहा ससविसाणं' ।
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