________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ उत्तरार्धम् ]
१२३ असंख्यात हैं केवल अनंत हैं. (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-) हे भगवन् वे किस अर्थ से ऐसे कहे जाते हैं कि-(नो संखिज्जा नो असंखेजा गणंता ?) संख्यात नहीं हैं असंख्यात भी नहीं हैं सिर्फ अनंत ही हैं ? (गोयमा ! अखेजा नेरइया) भोगौतम ! नारकीय असंख्यात हैं ( असंखे जा अमुरकुभाग ) असुरकुमार देव असंख्यात हैं (जाव असंखिजा भणियकुमारा,) यावत् असंख्यात स्तनितकुमार देव हैं, और (ग्रनखिजा पुढवीकाइया) असंख्यात पृथ्वोकाय के जोव हैं (जाव असंखे जा बाउकाइया) यावत् असंख्यात २ वायुकायादि के जोव हैं, किन्तु ( अगंता वणस्पइकाइया,) वनस्पति काय के अनंत जीव हैं, तथा ( अखे जा वेइंदिया ) असंख्यात द्वीन्द्रिय ( असंखेज्जा तेइंदिया ) असंख्यात त्रोन्द्रिय, हैं ( असं वे जा चरि दिया ) असंख्यात चतुरिन्द्रिय, ( असंखेजा पंचिंदियतिरिक्खजोगिया ) असंख्यात पंचेन्द्रिय तिर्यक् योनिवाले, ' असंग्वेजा मणुसा )* असंख्यात मनुष्य, (असंखेना वाणमंतरा)वान व्यंतर असंख्यात, (असंखेजा जोइसिया) ज्योतिषी देव असंख्यात हैं, (असंखेजा वेमागिया) वैमानिक असंख्यात हैं और (अगता सिद्धा,) सिद्ध अनंत हैं. (से तेणटे गोयमा ! एवं बुच्चइ-) इसलिये हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि( नो संग्वे जा ) न संख्यात हैं नो अमंग्वेज्ञा ) न असंख्यात हैं ( अगांता । ) केवल अनंत हैं । ( सूत्र १४४)
भावार्थ- द्रव्य के दो भेद हैं, जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य, जीव द्रव्य संख्यात असंख्यात नहीं हैं केवल अनंत हैं, क्योंकि असंख्यात नारकीय हैं, असंख्यात इस प्रकार के भवन पति देव है, असंख्यात पृथिवीकाय के जीव है इसी प्रकार असंख्यात अपकाय, असंख्यात अग्निकाय, असंख्यात वायुकायादि के जीव हैं, और वनस्पतिकायिक अनंत हैं । असंख्यात २ द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियादि हैं, और असंख्यात तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीव हैं, मनुष्य असंख्यात हैं, असंख्यात व्यन्तर देव हैं, असंख्यात ज्योतिषी देव हैं, असंख्यात वैमानिक देव हैं, लेकिन सिद्ध अनंत है, इसीलिये जीव द्रव्य संख्यात असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनंत द्रव्य है । तथा-अजीव द्रव्य भी दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसे कि-अरूवी अजीव द्रव्य, रूपी अजीव द्रव्य । अरूपी अजीव द्रव्य के दस भेद हैं, जैसे कि-धर्मास्तिकाय १ धर्मास्तिकाय देश २ धर्मास्तिकाय प्रदेश ३,अधर्मास्तिकाय ४ अधर्मास्तिकाय देश ', अधर्मास्तिकाय प्रदेश ६, आकाशास्तिकाय ७ आकाशास्तिकाय देश ८ अाकाशास्तिकाय प्रदेश ६ और समय १० । किन्तु धर्मास्तिकाय शब्द संग्रह नय से कहा गया है तथा देश प्रदेश शब्द व्यवहार नय
* मच्छिम और गर्भज र कत्र करने से मनुष्य संख्या असंख्यात होती है।
For Private and Personal Use Only