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[ श्रीमदनुयोगद्वारसूत्रम् ]
यस ) औदारिक शरीर का वर्णन किया गया है ( तहा भाणियत्रा ३ ।) उसी प्रकार जानना चाहिये ३ | (केवइयाणं भंते ! तेयगसरीश पण्णत्ता ?) हे भगवन् तैजस शरीर कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, जोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है, (तंजहा-) जैसे कि - ( बद्धल्लया य मुक्केल्लया य) बद्ध तैजस शरीर और मुक्त तैजस शरीर, (त्थं जे से बढ ल्लया) उनमें जो बद्ध शरीर हैं ( तेणं अता ) वे अमन्त हैं, अब अनन्त का प्रमाण कहते हैं - ( ताहिं ) अनन्त (उस्सप्पिणी ओस पगीहिं) उत्सप्पिणी और अब सपिणीयों के ( श्रवहीरंति काल ) काल अपहरण किये जाते हैं, और ( खेती ) क्षेत्र से ( अता लोगा ) अनंत लोका काश के प्रदेशों की राशि के तुल्य हैं, और ( दवाओं सिद्ध ेहिं तगुणा ) द्रव्य से सिद्धों अनन्तगुणे हैं, (सन्यजीवाण) सब जीवों की अपेक्षा (त भागुणा) अनन्त भाग न्यून हैं, क्योंकि - सर्व जीवों के अनंत भाग प्रमाण सिद्ध हैं, इनके के तैजस शरीर नहीं होता इस लिये सभी जीव वर्ग से तेजस शरीर अनंत भाग न्यून हैं, तथापि यह प्रश्न यहां पर उत्पन्न नहीं हो सकता क्योंकि "औदारिक असंख्यात " हैं फिर तैजस शरीर अनन्त क्यों हुए ?, क्योंकि एक औदारिक शरीर में अनन्त जीव निवास करते हैं, और प्रत्येक २ जीव के साथ पृथक् २ तैजस शरीर होते हैं, इसलिये यहाँ पर कोई भी शंका उत्पन्न नहीं हो सकती । संसारी जीव सिद्धों से अनन्त गुणे हैं इसलिये तैजस शरीर भी सिद्धों से अनंत गुणे हैं, क्योंकि उनके तैजस शरीर नहीं होता इस लिये तैजस शरीर सभी जीव वर्ग से अनन्त भाग न्यून हैं, तथा (तत्थ जे ते मुक े - ल्तया) उन दोनों में जो मुक्त तैजस शरीर हैं ( ते अता ) वे अन्नत हैं, अनंत का प्रमाण यह है कि (ताहिं) अनंत (उम्मप्पिणीओसप्पिणीहि) उत्सर्पिणी और अवस पिणो ( वहीति काल ) काल से अपहरण किये जाते हैं (खेप) क्षेत्र से (श्रणंता लोगा) अनंत लोकाकाश के प्रदेशों की राशि के तुल्य, और (दो) द्रव्य से (सबजीवेहिं श्रणंतगुणा) सभी जीवों से अनन्त गुणे हैं, क्योंकि एक २ जीव के अनंत २ मुक्त तैजस शरीर होते हैं. लेकिन (सजीव ांतभागी ) सभी जीवों के वर्ग का अनंतवाँ भाग हैं, क्योंकि-वर्ग उसे कहते हैं, जैसे कि चार ४ को चार सेगुणा किया जाय तो १६ हुए, इसलिये सोलह का वर्ग कहा जाता है। इसी तरह दस सहस्र को १० सहस्र गुणा किया जाय तो दस क्रोड होते हैं, इसी का नाम वर्ग है । इसी प्रकार सद्भाव से जीव राशि अनंत है, इस राशि को तद् गुणा किया जाय तो उसे वर्ग कहते हैं इसलिये सभी जीवों के साथ २ सिद्ध भी ग्रहण किये गये । परन्तुसिद्धों के मुक्त और तेजस शरीर नही होते, इस लिये सभी जीव वग से मुक्त तैजस शरीर अन्तत भाग न्यून हैं, क्योंकि सिद्ध भगवान् सर्व जीवों के अनंतव भाग में हैं, इस लिये
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